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अजमेर दरगाह विवाद: केंद्र सरकार ने शिव मंदिर वाले दावे को किया खारिज

अजमेर दरगाह विवाद: केंद्र सरकार ने शिव मंदिर वाले दावे को किया खारिज

शोभना शर्मा, अजमेर।    विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह एक बार फिर विवादों के केंद्र में है। दरगाह में प्राचीन शिव मंदिर होने का दावा करते हुए हिंदू राष्ट्र सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर याचिका को लेकर अब केंद्र सरकार ने अपना पक्ष साफ कर दिया है। अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय की ओर से कोर्ट में दायर किए गए हलफनामे में इस याचिका को “सुनवाई योग्य नहीं” बताया गया है और इसे खारिज करने की मांग की गई है।

केंद्र के इस हलफनामे के बाद अजमेर की अंजुमन सैयद जागदान कमेटी ने संतोष जताया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के इस रुख से साफ हो गया है कि याचिकाकर्ता का उद्देश्य सिर्फ सस्ती लोकप्रियता पाना था, न कि किसी ऐतिहासिक या कानूनी सच्चाई को उजागर करना।

विवाद की शुरुआत तब हुई जब विष्णु गुप्ता ने कोर्ट में यह दावा किया कि अजमेर दरगाह शरीफ असल में एक प्राचीन शिव मंदिर था, जिसे मुगलों ने दरगाह में बदल दिया। इस दावे पर उन्होंने अदालत में याचिका दायर की, जिसके बाद कोर्ट ने अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को नोटिस जारी किए थे।

इस मामले में शनिवार को अजमेर सिविल कोर्ट में सुनवाई होनी थी, लेकिन याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता वरुण कुमार सिंह सिन्हा के व्यक्तिगत कारणों से अनुपस्थित रहने के चलते सुनवाई टाल दी गई। अब इस मामले की अगली सुनवाई 31 मई 2025 को निर्धारित की गई है।

विष्णु गुप्ता की याचिका को लेकर सियासी हलकों में भी हलचल है। धार्मिक स्थलों को लेकर अदालतों में चल रहे मामलों ने देशभर में संवेदनशीलता बढ़ा दी है, और इसी पृष्ठभूमि में केंद्र सरकार का यह स्पष्ट रुख काफी मायने रखता है। हलफनामे में कहा गया है कि इस याचिका में कोई ठोस आधार नहीं है और यह कानूनी रूप से विचारणीय नहीं है।

दरगाह कमेटी की ओर से अंजुमन सैयद जागदान ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कोर्ट और सरकार को ऐसे झूठे दावों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए, क्योंकि इनसे धार्मिक सौहार्द बिगड़ने का खतरा बना रहता है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने जिस स्पष्टता के साथ अपना पक्ष कोर्ट में रखा है, वह सराहनीय है।

अब इस विवाद पर अंतिम निर्णय कोर्ट की प्रक्रिया और सुनवाई के बाद ही सामने आएगा। लेकिन इस बीच सरकार के इस रुख ने यह संकेत दे दिया है कि ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों से जुड़ी याचिकाओं में बिना तथ्य और प्रमाण के किसी भी दावे को अदालतों में टिकाना आसान नहीं होगा।

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