शोभना शर्मा। नगर निगम द्वारा दो दिन पहले सिटी की 293 नालों में से 84 की सफाई पूर्ण होने का दावा किया गया था। जिले की लाइफलाइन मानी जाने वाली एस्केप चैनल की भी सफाई की बात कही गई। लेकिन मैदान में जाकर स्थिति देखने पर साफ हुआ कि सफाई की गई नालों में जहां-तहां कचरा धंसा हुआ है, दीवारें टूटी पड़ी हैं, और बार-बार मरम्मत की कोई योजना नहीं दिखती। बरसात के समय इन नालों के साथ यह हाल बरती तो पूरा सिस्टम गंभीर बाढ़ जोखिम में आ सकता है।
1. सफाई क्यों अधूरी लगती है?
टूटी दीवारें व मरम्मत की कमी: कई नालों की किनारों की दीवार टूट चुकी है। इससे मिट्टी और मलबा बारिश के साथ फिर से बहकर नालों में पहुंच जाएगा, सफाई की सार्थकता समाप्त हो जाएगी।
निर्धारित तेज सफाई न होना: सफाई के दावों के बावजूद नालों में उगी घास भी नहीं हटाई गई, जो पानी के प्रवाह को रोकती है।
मुंहफट जगहों पर सफाई नहीं: कई काले नालों और नीचे तल्ली वाले हिस्सों में सफाई का कोई काम नहीं किया गया।
इन क्षेत्रों में वास्तव में “सफाई का महोत्सव” नहीं बल्कि ‘साफ करने का दिखावा’ चल रहा है।
2. संभावित खतरे—बरसात के समय बाढ़
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी अधूरी सफाई से आने वाली बारिश में नालों का जलस्तर बढ़कर घरों और गलियों में प्रवेश कर सकता है। सिस्टम के अवरुद्ध होने से सड़क पर जल जमाव, फसलों में नुकसान और स्वास्थ्य संबंधी समस्या खड़ी हो सकती है।
पांच प्रमुख कारण इससे जुड़े हैं:
आनासागर झील की क्षमता घट गई: स्मार्ट सिटी में स्वीमिंग वॉटरप्लैनेट और पाथ-वे निर्माण के चलते झील की क्षमता कम हुई है।
नाले लेवल असंतुलित: भू-उच्चास्तर से अनियोजित लेवल के कारण पानी गलियों में ठिठक जाता है।
छोटे-छोटे नाले: विशेष रूप से ब्रह्मपुरी, शिवपुरी, हाथी भाटा, खानपुरा, अलवर गेट जैसी कॉलोनियों में नाले की चौड़ाई और गहराई अपर्याप्त है।
नालों पर अतिक्रमण: कई स्थानों पर घर और दुकानों द्वारा अतिक्रमण किया गया है, जिससे पानी की निकासी बाधित होती है।
गंदे नाले और सीवर की अयोग्य सफाई: अधिकांश नालों में सफाई नहीं हुई है, मलबा और सीवरेज के अवरोध हैं, खासकर बड़े नाले जैसे एस्केप चैनल की स्थिति चिंतनीय है।
3. निगम की सफाई रणनीति व नागरिक भूमिका
मुख्य स्वास्थ्य निरीक्षक पृथ्वीसिंह जोधा ने कहा कि इस वर्ष निगम कर्मचारियों द्वारा स्वयं सफाई की गई, ठेका व्यवस्था नहीं की गई। 84 नालों में मशीन से सफाई हो चुकी, बाकी मैन्युअल तरीके से की गई। नगर निगम आयुक्त ने वाट्सएप नंबर 9057233296 जारी किया है, जहां नागरिक अपने वार्ड, नाली स्थल और फोटो जमा करा सकते हैं। स्वास्थ्य निरीक्षक शिकायत की जांच करेंगे। यह प्रणाली पारदर्शिता के लिए है, परंतु वास्तविक समय पर कार्यान्वयन नहीं हुआ तो यह साबित नहीं होता कि निगम ने पर्याप्त प्रयास किए हों।
4. पूर्व उपायुक्त का सवाल, क्या यह थी खानापूर्ति?
पूर्व उपायुक्त और वर्तमान पार्षद गजेंद्रसिंह रलावत ने निगम की सफाई पद्धति पर कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि कर्मचारियों द्वारा सफाई से रूटीन सिस्टम प्रभावित हुआ है, क्योंकि ठेकेदारों के बिना तकनीकी और निरंतरता में कमी रह जाती है। उनके मुताबिक बिना नाले की मरम्मत और दीवारों के टूटे रहने से बरसात में मलबा फिर से नालों में चलेगा, जिससे हर साल की समस्या दुहराई जाएगी।
क्या समाधान संभव है?
ठेका व्यवस्था की आवश्यकता: निरंतर सफाई हेतु वार्ड व अनुभागवार ठेका वितरण किया जाना चाहिए। ठेकेदारों के पास मशीन व सफाई स्टाफ होना चाहिए।
मलबा हटाने के साथ दीवार मरम्मत भी: नालों की दीवारें सुदृढ़ की जाएं ताकि मिट्टी का बहाव रोका जा सके।
नाल संरचना का पुनर्मूल्यांकन: कॉलोनी स्तर पर नाली चौड़ाई व गहराई की जांच कराकर विस्तार की आवश्यकता पूर्ण की जानी चाहिए।
अतिक्रमण पर फौरन कार्रवाई: नलियों के किनारे स्थित अवैध अतिक्रमण हटाने से जल निकासी मार्ग खुलेंगे।
निरंतर मॉनिटरिंग और शिकायत प्रणाली: वाट्सएप एवं स्थानीय हेल्पडेस्क द्वारा शिकायतों का तुरंत निपटान हो।
अपने तमाम दावों के बावजूद नगर निगम की सफाई की झलक ज़मीनी स्तर पर स्पष्ट नहीं है। नाले टूटी दीवारों, गंदगी और मलबे से भरे हैं, जिससे आने वाली मानसून बारिश में शामिल होने वाले बाढ़ जैसे हालात से शहर को जूझना पड़ सकता है।