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विज्ञापन जगत के दिग्गज पीयूष पांडे का निधन

विज्ञापन जगत के दिग्गज पीयूष पांडे का निधन

मनीषा शर्मा। भारत के विज्ञापन जगत के सबसे प्रसिद्ध और रचनात्मक दिमागों में शुमार पीयूष पांडे का 70 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। 23 अक्टूबर (गुरुवार) को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु के साथ भारतीय एडवरटाइजिंग इंडस्ट्री ने अपने सबसे प्रतिभाशाली रचनाकार को खो दिया।

चार दशकों तक अपने अनूठे विचारों और भारतीय भावनाओं को दर्शाने वाले विज्ञापनों से उन्होंने विज्ञापन की दुनिया में नया मानक स्थापित किया। फेविकोल, कैडबरी, एशियन पेंट्स, हच और BJP का नारा “अबकी बार, मोदी सरकार” उनके करियर की ऐसी झलकियां हैं, जिन्होंने उन्हें आम जनता के दिलों में अमर कर दिया।

फेविकोल, कैडबरी और एशियन पेंट्स से बनी पहचान

पीयूष पांडे की सोच ने भारतीय विज्ञापन को नई भाषा और आत्मा दी। उन्होंने एशियन पेंट्स के लिए “हर खुशी में रंग लाए”, कैडबरी डेयरी मिल्क के लिए “कुछ खास है” और फेविकोल के लिए “टूटेगा नहीं” जैसे यादगार विज्ञापन बनाए।
इन्हीं अभियानों ने उन्हें आम जनमानस से जोड़ा। “फेविकोल का जोड़” विज्ञापन तो देश की बोलचाल का हिस्सा बन गया था।

इसके अलावा, उन्होंने हच कंपनी के ‘पग डॉग’ वाले ऐड से यह दिखाया कि ब्रांड केवल उत्पाद नहीं, बल्कि भावनाओं का प्रतीक बन सकता है।

2014 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के लिए चर्चित चुनावी नारा “अबकी बार, मोदी सरकार” तैयार किया, जो बाद में देशभर में सबसे लोकप्रिय राजनीतिक अभियानों में से एक बन गया।

भारतीय विज्ञापन को दी अपनी पहचान

1982 में ओगिल्वी इंडिया (Ogilvy India) से अपने करियर की शुरुआत करने वाले पीयूष पांडे ने उस दौर में विज्ञापन को भारतीयता का चेहरा दिया, जब यह पूरी तरह अंग्रेज़ी विचारों से संचालित था।
उन्होंने स्थानीय भाषा, भारतीय संस्कृति और जनभावनाओं को विज्ञापन का केंद्र बनाया।

उनका पहला प्रिंट विज्ञापन सनलाइट डिटर्जेंट के लिए था। इसके बाद वह क्रिएटिव डायरेक्टर बने और धीरे-धीरे कंपनी के चीफ क्रिएटिव ऑफिसर के पद तक पहुंचे। उनके नेतृत्व में ओगिल्वी इंडिया ने लगातार 12 वर्षों तक भारत की नंबर 1 विज्ञापन एजेंसी का खिताब हासिल किया।

राजस्थान से गहरा नाता

पीयूष पांडे का राजस्थान से गहरा संबंध रहा। उनका जन्म 1955 में जयपुर में हुआ था। उनके पिता राजस्थान स्टेट कोऑपरेटिव बैंक में कार्यरत थे।
उनका परिवार बड़ा था, जिसमें सात बहनें और दो भाई शामिल थे।

उनके भाई प्रसून पांडे फिल्म निर्देशक हैं, जबकि बहन ईला अरुण जानी-मानी गायिका और अभिनेत्री हैं। एक और बहन रमा पांडे दूरदर्शन की प्रसिद्ध न्यूजरीडर और थिएटर आर्टिस्ट रही हैं।

पीयूष पांडे ने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से इतिहास में एम.ए. की पढ़ाई की और उसके बाद 1982 में विज्ञापन क्षेत्र में कदम रखा।

‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ और सामाजिक अभियानों से भी जुड़ाव

पीयूष पांडे का योगदान केवल व्यापारिक विज्ञापनों तक सीमित नहीं था। उन्होंने प्रसिद्ध राष्ट्रीय एकता गीत “मिले सुर मेरा तुम्हारा” लिखा, जिसने भारतीय संस्कृति और एकता की भावना को नए स्वर दिए।
उन्होंने पोलियो जागरूकता, धूम्रपान विरोधी अभियान, और सामाजिक एकता के संदेशों से जुड़े कई विज्ञापन भी तैयार किए। उनके विज्ञापन आम जनता की भावनाओं को सीधा छूते थे।

सहकर्मियों और उद्योग जगत की भावनात्मक श्रद्धांजलि

पीयूष पांडे के निधन के बाद पूरे विज्ञापन और मनोरंजन जगत में शोक की लहर है।
लेखक और उद्योग विशेषज्ञ सुहेल सेठ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा – “भारत ने सिर्फ एक महान विज्ञापनकर्ता ही नहीं, बल्कि एक सच्चा देशभक्त और विनम्र इंसान खो दिया है। अब जन्नत में भी ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ गूंजेगा।”

निर्देशक हंसल मेहता ने लिखा – “फेविकोल का जोड़ टूट गया। विज्ञापन जगत ने आज अपनी चमक खो दी।”
वहीं अदाणी समूह के मैनेजिंग डायरेक्टर प्रणव अदाणी ने कहा – “उन्होंने भारतीय विज्ञापन को वैश्विक पहचान दी और अनेक पीढ़ियों को प्रेरित किया। उनकी गर्मजोशी और बुद्धिमत्ता की कमी हमेशा खलेगी।”

सम्मान और उपलब्धियां

पीयूष पांडे को उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले।

  • 2016 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

  • 2024 में उन्हें LIA Legend Award मिला।

  • इसके अलावा, उन्हें Clio Lifetime Achievement Award, Media Asia Awards, और Cannes Lions में कई पुरस्कार प्राप्त हुए।

उनकी रचनात्मकता ने न केवल भारत बल्कि विश्व स्तर पर भी भारतीय विज्ञापन को सम्मान और पहचान दिलाई।

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