शोभना शर्मा। राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र स्थित बारां जिले से एक बार फिर सकारात्मक और राहतभरी खबर आई है। यहां के एक गांव में बड़ी संख्या में गिद्धों (Vultures) को देखा गया है। हल्की बारिश के दौरान इन पक्षियों का खेतों और पेड़ों पर मंडराना स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों के लिए न केवल आश्चर्यजनक, बल्कि बेहद सुकूनदायक दृश्य बन गया। गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों से गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट देखी जा रही थी। वर्ष 2008 के बाद से गिद्ध विलुप्ति के कगार पर थे। लेकिन अब बारां के कई गांवों में इन पक्षियों की फिर से मौजूदगी प्राकृतिक संतुलन के पुनः स्थापना की ओर संकेत कर रही है।
गिद्धों की भूमिका: किसान का मित्र और पर्यावरण का प्रहरी
विशेषज्ञों का मानना है कि गिद्ध न केवल प्राकृतिक सफाईकर्मी हैं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए किसान के मित्र भी माने जाते हैं। वे मरे हुए जानवरों के मांस को खाकर न केवल वातावरण को संक्रमण और दुर्गंध से बचाते हैं, बल्कि कई तरह की बीमारियों के प्रसार को भी रोकते हैं। पर्यावरणविद् ए.एच. जेदी ने जानकारी देते हुए कहा कि— “गिद्ध कभी शिकार नहीं करते, वे केवल मृत जानवरों का मांस खाते हैं और इंसानों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। यह बहुत बड़ी बात है कि बारां जिले में एक बार फिर इनकी वापसी देखी गई है।”
गिद्धों की प्रजातियां और विशेषताएं
भारत में गिद्धों की कई महत्वपूर्ण प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
भारतीय सफेद पीठ वाला गिद्ध (White-rumped Vulture)
हिमालयन गिद्ध (Himalayan Vulture)
पतली चोंच वाला गिद्ध (Long-billed Vulture)
लंबी चोंच वाला गिद्ध (Slender-billed Vulture)
इसके अलावा, कुछ प्रजातियां जैसे सिनेरियस और इजिप्शियन वल्चर पूरे साल देखी जा सकती हैं, जबकि सर्दियों में हिमालय क्षेत्र से ग्रिफन वल्चर भी राजस्थान में पहुंचते हैं। ये पक्षी आमतौर पर ऊंचे पेड़ों, चट्टानों या सुनसान क्षेत्रों में घोंसला बनाते हैं और लगभग 3 किलोमीटर दूर से ही मृत जानवर की गंध सूंघ सकते हैं।
संख्या में धीरे-धीरे हो रही वृद्धि
गिद्ध साल में केवल एक अंडा देते हैं और इनकी संख्या में वर्षभर में 10 से 20 की वृद्धि देखी जा सकती है। यह वृद्धि धीमी जरूर है, लेकिन संरक्षण प्रयासों के लिहाज से बेहद अहम मानी जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इन पक्षियों को उपयुक्त आवास और भोजन मिलता रहे, तो इनकी जनसंख्या फिर से संतुलन की स्थिति में आ सकती है।
गिद्ध संरक्षण की आवश्यकता
गिद्धों के विलुप्त होने के पीछे कई कारण रहे हैं, जिनमें मुख्य रूप से डाइक्लोफेनेक नामक दवा का उपयोग, आवास की कमी, प्रदूषण, और शिकार शामिल हैं। भारत सरकार और कई राज्य सरकारें गिद्धों के संरक्षण के लिए विशेष योजनाएं चला रही हैं। बारां जिले में गिद्धों की वापसी को इन प्रयासों की सफलता के रूप में देखा जा सकता है। यह घटना न केवल जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह ग्रामीण जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र के बेहतर भविष्य का संकेत भी देती है।