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गहलोत का आरोप: संचार साथी ऐप से नागरिकों की जासूसी कर रही सरकार

गहलोत का आरोप: संचार साथी ऐप से नागरिकों की जासूसी कर रही सरकार

मनीषा शर्मा। संचार साथी मोबाइल ऐप को लेकर देशभर में राजनीतिक विवाद तीखा होता जा रहा है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्र सरकार पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि यह ऐप नागरिकों की निगरानी और जासूसी के लिए तैयार किया गया है। गहलोत ने दावा किया कि हर मोबाइल फोन में इस ऐप को प्री-इंस्टॉल कराने की सरकारी योजना निजता के मौलिक अधिकार का खुला उल्लंघन है।

गहलोत ने सोशल मीडिया पर लिखा कि संचार साथी ऐप अनिवार्य करने का मतलब है कि हर नागरिक क्या बात करता है, किससे बात करता है, किन नंबरों से संपर्क में रहता है—यह सब सरकार की पहुंच में होगा। उन्होंने कहा कि यह सर्विलांस राज्य का नया संस्करण है, जहां नागरिकों को डराकर नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है।

‘जरूरत हो तो नियम पहले से मौजूद’, गहलोत का तर्क

पूर्व मुख्यमंत्री का कहना है कि यदि सुरक्षा कारणों या ऑनलाइन फ्रॉड रोकने के नाम पर निगरानी की जरूरत है, तो देश में पहले से ही कानून और नियम मौजूद हैं। गहलोत के अनुसार, नए ऐप को अनिवार्य बनाकर केंद्र सरकार नागरिक स्वतंत्रता को सीमित करना चाहती है। उन्होंने कहा कि यह कदम नागरिकों को धमकाने और ब्लैकमेल करने जैसा है, जिसका देशभर के लोगों को एकजुट होकर विरोध करना चाहिए।

सरकार का पक्ष: ऐप स्वैच्छिक है, निगरानी नहीं

विपक्ष के आरोपों पर केंद्र सरकार ने कड़ा पलटवार किया है। संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद संचार राज्य मंत्री चंद्रशेखर पेम्मासानी ने भी स्पष्ट किया कि संचार साथी ऐप किसी भी प्रकार की निगरानी के लिए नहीं बनाया गया है। उनका कहना है कि यह एक सामान्य एप्लीकेशन है, जिसे उपयोगकर्ता अपनी इच्छा से इंस्टॉल कर सकते हैं या फोन से हटा भी सकते हैं।

पेम्मासानी के अनुसार, ऐप का प्रमुख उद्देश्य बढ़ते ऑनलाइन फ्रॉड की शिकायतों को आसान बनाना और खोए हुए मोबाइल फोन को ट्रैक करने में मदद करना है। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में तकनीकी साधनों के जरिए साइबर अपराध बढ़ रहे हैं, ऐसे में नागरिकों को सुरक्षित रखने के लिए यह ऐप उपयोगी साबित हो सकता है।

निजता बनाम सुरक्षा की बहस तेज

संचार साथी ऐप को लेकर उठी यह बहस अब नागरिक अधिकारों और डिजिटल निजता के अधिकार पर केंद्रित हो गई है। एक ओर विपक्ष इसे सरकार के अतिरेक और निगरानी व्यवस्था का विस्तार बता रहा है, तो दूसरी ओर सरकार सुरक्षा और तकनीकी सहायता के तर्क के साथ इसका बचाव कर रही है।

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