शोभना शर्मा। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में सवाई माधोपुर के रणथम्भौर क्षेत्र की पहाड़ियों को अरावली पर्वतमाला से बाहर माना है। यह निर्णय अरावली की नई परिभाषा के अनुसार लिया गया है, जिसके तहत कहा गया है कि रणथम्भौर की पहाड़ियां अरावली का हिस्सा नहीं हैं। फैसले के बाद क्षेत्र में खनन गतिविधियां दोबारा शुरू होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं, क्योंकि सवाई माधोपुर जिला लंबे समय से सैंड स्टोन के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध रहा है।
पहले क्यों लागू थी खनन पर रोक
पूर्व आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वतमाला क्षेत्र में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया था, जिसका प्रभाव रणथम्भौर क्षेत्र पर भी पड़ा। हालांकि लंबे समय से यह तर्क दिया जाता रहा कि यहां अरावली और विंध्याचल पर्वत श्रंखला का मेल होता है, इसलिए यह अरावली का हिस्सा नहीं है। अब नई परिभाषा स्वीकार किए जाने के बाद यह स्थिति स्पष्ट हो गई है और सवाई माधोपुर तथा चित्तौड़गढ़ दोनों जिलों को अरावली श्रेणी से बाहर रखा गया है।
100 मीटर से कम ऊंचाई वाले पहाड़ों पर खनन की अनुमति संभव
सुप्रीम कोर्ट की नई परिभाषा के अनुसार 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों में खनन को अनुमति दी जा सकती है। खनन विभाग के अधिकारियों ने भी इसे पुष्ट करते हुए कहा है कि सवाई माधोपुर जिला अरावली की श्रेणी में नहीं आता। हालांकि वर्तमान में क्षेत्र में सीटीएच (क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट) लागू है, जिसके चलते फिलहाल खनन पर प्रतिबंध जारी है। जब तक नया सरकारी नोटिफिकेशन जारी नहीं होता, खनन शुरू नहीं किया जा सकेगा।
वन्यजीव और पारिस्थितिकी पर असर की आशंका
पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि यदि रणथम्भौर टाइगर रिजर्व के आसपास खनन शुरू होता है तो इससे वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। यहां का जंगल देश और दुनिया में बाघ, तेंदुए और दुर्लभ प्रजातियों की मजबूत उपस्थिति के लिए जाना जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि खनन मशीनों के शोर, ट्रक आवाजाही और मानव गतिविधियों से बाघों के मूवमेंट पैटर्न में बाधा पैदा हो सकती है और मानव–बाघ संघर्ष बढ़ सकता है।
टाइगर कॉरिडोर पर पड़ सकता है असर
धौलपुर–करौली टाइगर रिजर्व, रणथम्भौर और रामगढ़ विषधारी के बीच एक सक्रिय टाइगर कॉरिडोर मौजूद है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि खनन शुरू होता है तो यह कॉरिडोर बाधित हो सकता है, जिससे बाघों की सुरक्षा, प्रजनन और प्राकृतिक व्यवहार पर दुष्परिणाम पड़ना तय है। इसलिए पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन सुनिश्चित करने की चुनौती सरकार के सामने खड़ी होगी।


