मनीषा शर्मा। हर साल 1 दिसंबर का दिन संपूर्ण विश्व में वर्ल्ड एड्स डे के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य है—एड्स जैसी गंभीर बीमारी के प्रति जागरूकता बढ़ाना, इससे जुड़े मिथकों और सामाजिक कलंक को खत्म करना और HIV संक्रमित लोगों के प्रति सहानुभूति और समर्थन का संदेश देना। एड्स अभी भी दुनिया की उन गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक है, जिसके लिए आज भी कोई स्थायी इलाज उपलब्ध नहीं है।
एड्स शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को धीरे–धीरे नष्ट कर देता है, जिससे सामान्य संक्रमण भी जानलेवा साबित हो सकते हैं। इसलिए इस बीमारी के प्रति जागरूकता, नियमित जांच, सुरक्षित व्यवहार और शीघ्र इलाज बेहद जरूरी है। ऐसे में सवाल उठता है—आखिर 1 दिसंबर का दिन ही क्यों चुना गया और वर्ल्ड एड्स डे की शुरुआत कैसे हुई?
वर्ल्ड एड्स डे की शुरुआत कैसे हुई?
1980 के दशक में जब एड्स तेजी से फैल रहा था, तब दुनिया में इसके बारे में जागरूकता की भारी कमी थी। लोग इस बीमारी को लेकर कई गलत धारणाओं और मिथकों से घिरे थे। इसी दौरान जेम्स डब्ल्यू. बुन और थॉमस नेटर नाम के दो पब्लिक हेल्थ विशेषज्ञों ने सोचा कि यदि एक वैश्विक जागरूकता दिवस शुरू किया जाए, तो इस बीमारी को लेकर सही जानकारी लोगों तक पहुंचाई जा सकती है।
इसी उद्देश्य से 1988 में पहली बार 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया गया। इसकी तारीख इसलिए चुनी गई क्योंकि यह दिन चुनावी व्यस्तताओं और क्रिसमस की छुट्टियों से दूर माना जाता था, जिससे व्यापक जनसहभागिता सुनिश्चित हो सके। शुरुआत में इसका नेतृत्व विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) करता था, लेकिन 1996 में इस जिम्मेदारी को यूएनएड्स (UNAIDS) ने संभाल लिया। तब से हर साल वर्ल्ड एड्स डे के लिए एक अंतरराष्ट्रीय थीम निर्धारित की जाती है।
1 दिसंबर ही क्यों चुना गया?
1 दिसंबर को इसलिए चुना गया क्योंकि:
यह दिन साल की अंतिम तिमाही में आता है, जहां वैश्विक एजेंसियों का ध्यान आसानी से केंद्रित हो सकता है।
त्योहारों और चुनावी व्यस्तताओं से यह दिन प्रभावित नहीं होता।
इसे एक “न्यूट्रल डेट” माना गया, जिस पर दुनिया के अधिकतम देशों की भागीदारी संभव हो सके।
इस प्रकार 1 दिसंबर वैश्विक स्तर पर एड्स जागरूकता का प्रतीक बन गया।
वर्ल्ड एड्स डे 2025 की थीम
इस वर्ष वर्ल्ड एड्स डे 2025 की थीम है—
Overcoming disruption, transforming the AIDS response
यह थीम 2030 तक एड्स को समाप्त करने के वैश्विक लक्ष्य से जुड़ी है। इसका संदेश है कि जब तक दुनिया स्वास्थ्य सुविधाओं तक समान पहुंच, शिक्षा में सुधार और सामाजिक–आर्थिक असमानता को खत्म नहीं करती, तब तक एड्स को रोकना एक बड़ी चुनौती बना रहेगा।


