शोभना शर्मा। राजस्थान परिवहन विभाग में पुराने हैरिटेज नंबरों को बैकलॉग कर गलत तरीके से आवंटित करने का बड़ा घोटाला अब गंभीर रूप लेता जा रहा है। इस मामले में डिप्टी सीएम एवं परिवहन मंत्री डॉ. प्रेमचंद बैरवा ने दोषी पाए गए अधिकारियों और कर्मचारियों पर एफआईआर दर्ज करने के निर्देश जारी कर दिए हैं। मार्च 2025 से शुरू हुई यह जांच अब राज्यव्यापी स्तर पर फैल चुकी है, और जांच में कई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आ रही हैं।
जयपुर RTO प्रथम से खुला घोटाला
इस घोटाले का खुलासा सबसे पहले जयपुर RTO प्रथम में हुआ, जहां बैकलॉग कर 7 डिजिट वाली पुरानी सीरीज के हैरिटेज नंबर महंगे दामों पर बेचने का आरोप लगा। प्रारंभिक जांच में बाबू सुरेश तनेजा और सहायक प्रोग्रामर रामजीलाल के नाम सामने आए। दोनों को विभाग पहले ही निलंबित कर चुका है। इनके द्वारा कई पुराने पंजीयनों को बैकडेट कर अवैध रूप से आवंटित करने के सबूत मिले। जांच तेजी से बढ़ने के बाद झुंझुनूं और राजसमंद के जिला परिवहन अधिकारियों (DTO) को भी निलंबित किया गया। खेतड़ी डीटीओ और झुंझुनूं के निरीक्षकों पर भी विभागीय कार्रवाई की गई, जिससे स्पष्ट है कि यह मामला केवल एक कार्यालय तक सीमित नहीं है।
राज्यभर में विस्तृत जांच, 8500 गलत बैकलॉग वाहन चिन्हित
परिवहन विभाग ने राज्यभर में जांच के लिए अपर परिवहन आयुक्त रेणु खंडेलवाल को जिम्मेदारी सौंपी। उनके निर्देश पर सभी आरटीओ को संदिग्ध बैकलॉग वाहनों की सूची भेजी गई। इस सूची में 8500 ऐसे पंजीकरण शामिल थे जिन्हें गलत तरीके से बैकलॉग किया गया था। दौसा को छोड़कर अधिकांश जिलों ने अपनी जांच रिपोर्ट जमा कर दी है। दौसा आरटीओ के रिपोर्ट नहीं भेजने पर उन्हें भी निलंबित कर दिया गया है, जबकि सवाई माधोपुर डीटीओ की रिपोर्ट अभी लंबित है। जांच के दौरान यह भी सामने आया कि 8500 बैकलॉग वाहनों में से करीब 2000 वाहनों का रिकॉर्ड विभाग से पूरी तरह गायब है। यह गंभीर अनियमितता न केवल भ्रष्टाचार बल्कि रिकॉर्ड प्रबंधन में भी बड़े व्यवस्थित खेल की ओर इशारा करती है।
कई RTO और 400 से अधिक कार्मिक जांच के दायरे में
विभागीय सूत्रों का कहना है कि जांच में अब दो से तीन RTO के नाम भी सामने आ रहे हैं। बैकलॉग और पंजीयन से जुड़े मामलों में करीब 35 डीटीओ और लगभग 400 अधिकारी-कर्मचारी संदेह के घेरे में हैं। केवल जयपुर RTO प्रथम में ही 32 कार्मिकों के खिलाफ अनियमितता के प्रमाण मिले हैं, जिसमें कई डीटीओ, निरीक्षक और बाबू शामिल हैं। विभागीय समिति का अनुमान है कि इस घोटाले में करीब 500 करोड़ रुपये तक की वित्तीय अनियमितता हुई है। रिन्युअल फीस और ट्रांसफर फीस न लेने के कारण विभाग को भारी नुकसान पहुंचा। इसके अलावा कई मामलों में रिकॉर्ड छेड़छाड़ और तकनीकी सिस्टम से डेटा गायब करने जैसी गंभीर तकनीकी हेराफेरी भी सामने आई है।
एफआईआर कौन कराएगा? विभाग कल जारी करेगा दिशा-निर्देश
परिवहन विभाग इस मामले में विस्तृत दिशा-निर्देश कल जारी करेगा। विभाग का प्रारंभिक निर्णय यह है—
जिन जिलों में दोषी कर्मचारी पाए गए हैं, वहां संबंधित डीटीओ पुलिस में एफआईआर दर्ज कराएंगे।
जहां डीटीओ खुद आरोपों के दायरे में हैं, वहां FIR दर्ज कराने की जिम्मेदारी संबंधित आरटीओ को सौंपी जाएगी।
इस व्यवस्था से यह सुनिश्चित होगा कि जांच और FIR निष्पक्ष रूप से हो सके।
ED ने भी मांगा जवाब, जांच का दायरा बढ़ा
इस घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भी हस्तक्षेप किया है और परिवहन विभाग से तीन बिंदुओं पर विस्तृत जवाब मांगा है। ED ने विशेष रूप से जयपुर RTO प्रथम के बाबू सुरेश तनेजा द्वारा किए गए लगभग 80 पंजीयनों की विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। इसके साथ ही विभाग से राज्यभर में हुई वित्तीय अनियमितताओं पर भी विस्तृत विवरण तलब किया गया है। वित्तीय अनियमितता से जुड़ी रिपोर्ट परिवहन मुख्यालय पहले ही वित्त विभाग को भेज चुका है, जिसके बाद ED ने जांच में रुचि दिखाई। विभाग ED को तीनों बिंदुओं पर जवाब भेज चुका है, और माना जा रहा है कि आने वाले समय में ED स्तर पर भी पूछताछ आगे बढ़ सकती है।


