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अजमेर में किन्नर का अनोखा विरोध: 500-500 की गड्डियां लेकर कलेक्ट्रेट पर धरना

अजमेर में किन्नर का अनोखा विरोध: 500-500 की गड्डियां लेकर कलेक्ट्रेट पर धरना

मनीष शर्मा । अजमेर कलेक्ट्रेट के बाहर रविवार का दिन एक अनोखे विरोध-प्रदर्शन का गवाह बना। पुष्कर अंतरराष्ट्रीय पशु मेले में सुर्खियां बटोर चुकी सुशीला किन्नर ने अपनी समस्या को लेकर प्रशासन का ध्यान आकर्षित करने के लिए अद्वितीय तरीका अपनाया। सुशीला 500-500 रुपए की गड्डियां लेकर कलेक्ट्रेट के बाहर जमीन पर बैठ गई और अपनी पीड़ा बताकर जिला प्रशासन से न्याय की मांग की।

सुशीला का आरोप है कि उसके घर के पास स्थित एक अवैध रिसॉर्ट में अक्सर शादी समारोह आयोजित होते हैं, जिनमें तेज और भारी आतिशबाजी की जाती है। इसी आतिशबाजी के कारण कुछ महीने पहले एक बड़ा हादसा हो गया। उसके अनुसार, आतिशबाजी से उसके मकान के हिस्से में आग लग गई और वहां रखे पशुओं के बाड़े में भी आग फैल गई। इस आग में पशुओं का चारा जलकर खाक हो गया और उसे हजारों रुपये का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। सुशीला बताती है कि वह अपने घर और पशुओं की सुरक्षा को लेकर लगातार चिंतित रहती है।

रिसॉर्ट मालिक से समझौता, पर समस्या जस की तस

सुशीला और रिसॉर्ट मालिक के बीच इस मामले को लेकर लिखित समझौता भी हुआ। उम्मीद थी कि इस समझौते के बाद आतिशबाजी बंद हो जाएगी, लेकिन उसका आरोप है कि समझौते की शर्तों का पालन अब तक नहीं हुआ। रोजाना होने वाली तेज आतिशबाजी से पशु दहशत में रहते हैं और घर के सदस्य भी लगातार घबराहट की स्थिति में हैं।

उसी समस्या के समाधान की तलाश में वह कलेक्ट्रेट पहुंची। 500-500 की गड्डियों के प्रतीकात्मक इस्तेमाल से वह प्रशासन को यह संदेश देना चाहती थी कि उसके लिए पैसों का नुकसान उतना बड़ा मुद्दा नहीं, बल्कि भविष्य में ऐसे खतरों को रोकना आवश्यक है।

प्रशासन से कड़ी कार्रवाई की मांग

सुशीला ने जिला प्रशासन और पुलिस से तत्काल प्रभावी कार्रवाई की मांग की। उसका कहना है कि यदि जल्द कार्यवाही नहीं की गई तो किसी बड़े हादसे से इनकार नहीं किया जा सकता। उसने रिसॉर्ट की अवैध गतिविधियों और सुरक्षा मानकों की जांच कराने की भी मांग रखी है ताकि आम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

किन्नरों की आवाज को नजरअंदाज न करने की अपील

प्रदर्शन के दौरान सुशीला ने कहा कि किन्नर समुदाय अक्सर समाज और प्रशासन के लिए अंतिम प्राथमिकता होता है। उनकी समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता, जबकि वे भी नागरिक हैं और सुरक्षित वातावरण में रहने का अधिकार रखते हैं। उसने कहा कि प्रशासन को उनकी आवाज भी उसी संवेदनशीलता से सुननी चाहिए जैसे अन्य लोगों की सुनी जाती है।

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