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सांवलियाजी मंदिर भंडार पर कोर्ट की रोक: चढ़ावा अब सिर्फ भक्तों और स्थानीय जरूरतों पर खर्च होगा

सांवलियाजी मंदिर भंडार पर कोर्ट की रोक: चढ़ावा अब सिर्फ भक्तों और स्थानीय जरूरतों पर खर्च होगा

मनीषा शर्मा। मेवाड़ के प्रमुख श्रद्धा स्थल श्री सांवलियाजी मंदिर से जुड़े करोड़ों रुपए के भंडार पर मंडफिया सिविल कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मंदिर की चढ़ावे की राशि अब किसी भी राजनीतिक या बाहरी क्षेत्र की योजनाओं पर खर्च नहीं की जाएगी। यह निर्णय न केवल मंदिर प्रबंधन बल्कि पूरे प्रदेश के धार्मिक स्थलों के लिए एक नई मिसाल माना जा रहा है।

मंडफिया के सिविल जज विकास कुमार द्वारा दिए गए इस फैसले ने मंदिर भंडार पर वर्षों से बने राजनीतिक और संस्थागत दबावों पर पूरी तरह से विराम लगा दिया है। सांवलियाजी मंदिर के भंडार से हर महीने 26 से 27 करोड़ रुपए की भारी आय होती है, जिस पर लंबे समय से कई संस्थाओं और नेताओं की नजर रही है।

मामले की शुरुआत और विवाद की जड़

यह विवाद वर्ष 2018 में उस समय शुरू हुआ था, जब मंदिर मंडल ने राज्य सरकार की बजट घोषणा के तहत मातृकुंडिया तीर्थस्थल के विकास के लिए 18 करोड़ रुपए देने का प्रस्ताव पास किया।
स्थानीय निवासी मदन जैन, कैलाश डाड, श्रवण तिवारी और अन्य लोगों ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए जनहित याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि मंदिर की चढ़ावे की राशि को बाहरी धार्मिक स्थलों, राजनीतिक घोषणाओं और अन्य गैर-जरूरी स्थानों पर खर्च किया जा रहा है, जबकि मंदिर और स्थानीय क्षेत्र में कई मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।

याचिका में यह भी बताया गया कि मंदिर परिसर में भोजनशाला, पार्किंग, शौचालय, बेहतर चिकित्सा सेवा, अस्पताल और उच्च स्तरीय स्कूल जैसी सुविधाएँ अब भी अधूरी हैं। ऐसे में करोड़ों रुपए बाहरी क्षेत्रों पर खर्च करना भक्तों की आस्था के साथ खिलवाड़ है।

कोर्ट का सख्त रुख और स्पष्ट आदेश

सिविल जज विकास कुमार ने फैसला सुनाते हुए कहा कि मंदिर की निधि को राजनीतिक प्रभाव, बाहरी दबाव या किसी अन्य बाहरी परियोजना में खर्च करना कानूनन गलत है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि मंदिर मंडल को धन खर्च करते समय मंदिर मंडल अधिनियम 1992 की धारा 28 का सख्ती से पालन करना होगा। यदि चढ़ावे की राशि का दुरुपयोग किया गया तो यह “आपराधिक न्याय भंग” माना जाएगा और संबंधित अधिकारियों पर व्यक्तिगत स्तर पर कार्रवाई होगी।

कोर्ट ने मातृकुंडिया विकास के लिए प्रस्तावित 18 करोड़ रुपए के बजट पर स्थायी रोक लगाते हुए आदेश दिया कि इस दिशा में किसी भी प्रकार की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ाई जाएगी।

गोशालाओं और बाहरी संस्थाओं को फंड देने पर भी रोक

पिछले कई वर्षों से सांवलियाजी मंदिर के भंडार से गोशालाओं और धार्मिक संस्थाओं को आर्थिक सहायता देने की मांग होती रही है। कई भाजपा नेताओं, धर्मगुरुओं और सामाजिक संस्थाओं ने भी इस दिशा में दबाव बनाया था।
इसके पहले कांग्रेस सरकार के दौरान देवस्थान मंत्री रही शकुंतला रावत भी गोशालाओं के लिए फंड स्वीकृत कराने की कोशिश कर चुकी थीं, पर भारी विरोध के कारण निर्णय आगे नहीं बढ़ सका।

कोर्ट के ताज़ा आदेश के बाद अब ऐसे सभी प्रयास स्वतः ही बंद हो गए हैं।

स्थानीय भक्तों की जीत, मंदिर भंडार अब सुरक्षित

अदालत के इस निर्णय से स्थानीय लोगों और भक्तों में संतोष है। वे लंबे समय से यह मांग कर रहे थे कि मंदिर की भारी कमाई का उपयोग पहले मंदिर परिसर और आसपास की मूलभूत सुविधाओं को विकसित करने में किया जाए।

लोग उम्मीद जता रहे हैं कि अब भोजनशाला, स्वच्छता व्यवस्था, पार्किंग, स्वास्थ्य सेवाओं और स्कूल जैसी सुविधाओं पर प्राथमिकता से काम होगा। अभी हाल ही में मंदिर परिसर की पार्किंग का टेंडर जारी किया गया है, जिस पर भी स्थानीय लोगों ने शुल्क लगाए जाने को लेकर सवाल उठाए थे।

ऐतिहासिक फैसला और धार्मिक स्थलों के लिए मिसाल

यह फैसला श्री सांवलियाजी मंदिर ही नहीं बल्कि पूरे राजस्थान के धार्मिक स्थलों के लिए दिशा-निर्देश बन सकता है। अदालत का संदेश स्पष्ट है कि मंदिर की निधि भक्तों की होती है और उसका उपयोग उन्हीं की सुविधाओं और जरूरतों के लिए होना चाहिए।

राजनीतिक दबाव या बाहरी प्रभाव अब मंदिर के धन पर हावी नहीं हो सकेंगे। भक्तों के अनुसार, यह निर्णय मंदिर की पवित्रता और पारदर्शिता को बनाए रखने की दिशा में एक बड़ा और महत्वपूर्ण कदम है।

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