शोभना शर्मा। राज्य की शिक्षा व्यवस्था और सरकारी स्कूलों के प्रबंधन की एक अनोखी, लेकिन गंभीर तस्वीर नवलड़ी ग्राम पंचायत की खीचड़ों की ढाणी स्थित एक प्राथमिक विद्यालय पेश करता है। यह विद्यालय अपने आप में एक अद्वितीय शैक्षणिक इकाई है, जहां पढ़ने वाली एकमात्र छात्रा 7 वर्षीय खुशी खीचड़ है। यह पूरा सरकारी स्कूल, एक ही बच्ची, एक ही अध्यापिका और पोषाहार बनाने के लिए कार्यरत एक महिला के भरोसे चल रहा है। इस स्थिति ने न केवल शैक्षणिक माहौल बल्कि संसाधनों के इस्तेमाल पर भी बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
स्कूल में मनीषा नामक एक अध्यापिका नियुक्त हैं, जबकि पोषाहार (मिड-डे मील) बनाने के लिए एक महिला कर्मचारी कार्यरत हैं। सैद्धांतिक रूप से, यह विद्यालय पूरी तरह से चालू है, लेकिन व्यावहारिक रूप से यह एक असाधारण परिस्थिति का उदाहरण है, जहां सरकार का एक पूरा तंत्र केवल एक विद्यार्थी के लिए संचालित हो रहा है।
शिक्षक की अनुपस्थिति यानी स्कूल पर ताला
इस विद्यालय की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यह पूरी तरह से अध्यापिका मनीषा की उपस्थिति पर निर्भर है। चूंकि स्कूल में अध्यापिका अकेली हैं, इसलिए जिस दिन वे बीमार हो जाती हैं या किसी अन्य आवश्यक वजह से छुट्टी पर रहती हैं, उस दिन विद्यालय का ताला तक नहीं खुलता। इसी प्रकार, यदि एकमात्र छात्रा खुशी खीचड़ किसी कारणवश स्कूल नहीं आ पाती है, तो अध्यापिका के पास पढ़ाने के लिए कोई विद्यार्थी नहीं होता है। हाल ही में, अध्यापिका मनीषा को डेंगू हो जाने के कारण उन्हें इस महीने लगभग 10 दिन का अवकाश लेना पड़ा। नतीजतन, इन सभी दिनों में स्कूल बंद रहा और खुशी को घर पर ही अपनी पढ़ाई रोकनी पड़ी। यह स्थिति दर्शाती है कि विद्यालय का अस्तित्व और संचालन कितना नाजुक और व्यक्तिगत उपस्थिति पर आधारित है।
एक बच्ची पर सालाना 10 लाख रुपए का भारी खर्च
यह प्राथमिक विद्यालय संसाधनों के कुप्रबंधन का एक चौंकाने वाला उदाहरण पेश करता है। जब आर्थिक पहलू पर गौर किया जाता है, तो स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है।
शिक्षिका का मासिक वेतन
पोषाहार बनाने वाली महिला का मानदेय
विद्यालय का अन्य स्थाई खर्च (बिजली, पानी, रखरखाव, पोषाहार सामग्री)
इन सभी मदों के खर्च का योग किया जाए तो इस विद्यालय में एकमात्र छात्रा खुशी खीचड़ की शिक्षा पर सालाना लगभग 10 लाख रुपए का भारी भरकम सरकारी खर्च आ रहा है। शिक्षा व्यवस्था में यह एक ऐसा बिंदु है जहां कम नामांकन वाले स्कूलों को संचालित करने की वित्तीय औचित्य पर गंभीर बहस की आवश्यकता है। एक ओर जहां कई बड़े स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, वहीं इस तरह की इकाइयां मानव और वित्तीय संसाधनों का असंतुलित इस्तेमाल दर्शाती हैं।
पिछले सत्र की स्थिति और नामांकन की वजह
पिछले शैक्षणिक सत्र में विद्यालय की स्थिति थोड़ी भिन्न थी। तब विद्यालय में दो विद्यार्थी और दो अध्यापिकाएं कार्यरत थीं। लेकिन सत्र समाप्त होने के बाद, स्थिति बदल गई:
एक अध्यापिका सेवानिवृत्त हो गईं।
एक बच्चा पांचवीं कक्षा पास कर शिक्षा के अगले स्तर के लिए दूसरे विद्यालय में चला गया।
परिणामस्वरूप, इस सत्र में खुशी खीचड़ ही एकमात्र विद्यार्थी रह गई। खुशी का परिवार एक साधारण किसान परिवार से है। परिजनों ने बताया कि उनका घर विद्यालय से मात्र 200 मीटर की दूरी पर है। नजदीकी ही एकमात्र मुख्य कारण था, जिसके चलते उन्होंने खुशी का नामांकन इसी प्राथमिक विद्यालय में करवाया, क्योंकि इससे उसे लंबी दूरी तय नहीं करनी पड़ती।
अधिकारियों का दावा और जमीनी हकीकत
इस मामले ने जब सुर्खियां बटोरीं, तो अधिकारियों की तरफ से भी प्रतिक्रिया आई। दो दिन पहले, उच्च माध्यमिक विद्यालय नवलड़ी के प्रधानाचार्य एवं पीईईओ (पंचायत प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी) ने मीडिया को बताया कि छात्रा खुशी का नामांकन उच्च माध्यमिक विद्यालय में करवा दिया गया है और प्राथमिक विद्यालय की अध्यापिका मनीषा की ड्यूटी भी वहीं लगा दी गई है। यह एक त्वरित कार्रवाई के रूप में दिखाया गया।
हालांकि, जब जमीनी हकीकत जांची गई, तो यह दावा झूठा साबित हुआ। वास्तविकता यह थी कि अध्यापिका मनीषा उसी प्राथमिक विद्यालय में अपनी ड्यूटी पर थीं और खुशी को पढ़ा रही थीं। अध्यापिका ने स्वयं बताया कि उन्हें स्कूल शिफ्ट किए जाने या उनकी ड्यूटी बदलने का कोई लिखित आदेश नहीं मिला है। यह विसंगति सरकारी तंत्र में आदेशों के निष्पादन और पारदर्शिता पर सवाल खड़े करती है।
अध्यापिका मनीषा की उच्च माध्यमिक विद्यालय नवलड़ी में ड्यूटी लगाने की बात भी तर्कसंगत नहीं लगती, क्योंकि प्राथमिक विद्यालय खुशी के घर से केवल 200 मीटर दूर है, जबकि उच्च माध्यमिक विद्यालय नवलड़ी करीब 4 किलोमीटर दूर है। इतनी लंबी दूरी तय करना एक 7 वर्षीय बच्ची के लिए बड़ी मुश्किल पैदा कर सकता है।
मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी का स्पष्टीकरण
इस पूरे प्रकरण पर मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (सीबीईओ), नवलगढ़, आत्माराम ने अपना पक्ष रखा। उनका कहना है कि: “विद्यालय शिफ्ट करने का अधिकार न पीईईओ के पास है और न ही यह मेरे अधिकार क्षेत्र में आता है। पीईईओ के माध्यम से प्राप्त पत्र सीबीईओ कार्यालय द्वारा उच्चाधिकारियों को भेजा जाता है। इस संबंध में अंतिम निर्णय राज्य सरकार के सक्षम अधिकारी ही लेते हैं।”


