मनीषा शर्मा। राजस्थान की नौकरशाही में मंगलवार को बड़ा बदलाव देखने को मिला, जब मुख्य सचिव सुधांश पंत का अचानक तबादला कर दिया गया। उनके स्थान पर नए मुख्य सचिव की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। यह बदलाव ऐसे समय पर हुआ है जब पंत की सेवानिवृत्ति में अभी लगभग 13 महीने बाकी थे। इस घटनाक्रम के बाद से ही प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों में चर्चाओं का दौर तेज हो गया है। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने इस तबादले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सुधांश पंत को दिल्ली में काम करना हमेशा पसंद रहा है और वे वहीं सहज महसूस करते हैं।
अशोक गहलोत ने उदयपुर में मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, “सुधांश पंत मेरे कार्यकाल में एसीएस (अतिरिक्त मुख्य सचिव) के पद पर तैनात थे। तब भी उन्होंने कई बार दिल्ली लौटने की इच्छा जताई थी। अब जब एसीसी सचिव का आदेश आया है, तो इसके बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं। असली कारण तो सरकार और स्वयं पंत को ही पता होगा।” गहलोत ने यह भी स्पष्ट किया कि उन्हें पंत के ट्रांसफर के पीछे की पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन यह कदम अचानक नहीं बल्कि पूर्व संकेतों के आधार पर लिया गया लगता है।
सुधांश पंत ने 1 जनवरी 2024 को राजस्थान के मुख्य सचिव का पदभार संभाला था। इससे पहले वे केंद्र सरकार में सचिव (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय) रह चुके हैं। कोविड-19 प्रबंधन के दौरान उनके कार्यों की व्यापक सराहना की गई थी और उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भरोसेमंद अफसर माना जाता है। वसुंधरा राजे सरकार के समय वे राजस्थान कैडर से दिल्ली प्रतिनियुक्त हुए थे, और भजनलाल शर्मा के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें फिर से राजस्थान लाया गया। उनके आने के बाद प्रशासनिक पुनर्गठन, वित्तीय अनुशासन और नई योजनाओं के क्रियान्वयन पर फोकस किया गया था।
हालांकि, बीते कुछ महीनों में पंत और मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) के बीच तालमेल की कमी की खबरें सामने आने लगी थीं। सूत्रों का कहना है कि कुछ अहम फाइलें सीधे मुख्यमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी के पास भेजी जा रही थीं, जबकि सामान्य रूप से वे मुख्य सचिव के माध्यम से जाती हैं। आलोक गुप्ता के तबादले के बाद से पंत की भूमिका सीमित होती गई और कई प्रशासनिक निर्णय सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय से लिए जाने लगे। बताया जाता है कि कुछ अधिकारियों की नियुक्ति में भी पंत की सिफारिशों को दरकिनार किया गया, जिससे वे असहज महसूस कर रहे थे।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह तबादला केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि केंद्र और राज्य के बीच बढ़ते समन्वय का हिस्सा भी हो सकता है। चूंकि पंत लंबे समय तक दिल्ली में काम कर चुके हैं और वहां उनकी गहरी पकड़ मानी जाती है, इसलिए उन्हें दोबारा केंद्र भेजे जाने को कई लोग ‘विन-विन स्थिति’ बता रहे हैं। केंद्र ने उनके अनुभव का उपयोग मंत्रालय में खाली पड़े अहम पद को भरने के लिए किया है।
राजस्थान की राजनीति में यह तबादला नया नहीं है। 2013 में वसुंधरा राजे सरकार के समय भी तत्कालीन मुख्य सचिव राजीव महर्षि को अचानक केंद्र भेजा गया था। अब सुधांश पंत भी उसी श्रेणी में शामिल हो गए हैं, जिनका तबादला सीधे केंद्र सरकार ने किया है। दोनों ही मामलों में अफसरों का दिल्ली से गहरा जुड़ाव और केंद्र के साथ उनकी कार्यशैली अहम रही।


