शोभना शर्मा। राजस्थान का प्रसिद्ध पुष्कर मेला अब अपने पूरे रंग में है। अजमेर जिले के पुष्कर में हर साल लगने वाला यह ऐतिहासिक मेला इस बार भी हजारों पशुओं और लाखों पर्यटकों का केंद्र बन गया है। रेतीले धोरों पर इस समय पशुपालकों की भीड़ उमड़ रही है। मैदान में जगह-जगह टेंट लग चुके हैं और अश्व व ऊंट पालक अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में पहुंचे हैं।
पशुपालन विभाग के अनुसार, रविवार दोपहर तक मेले में कुल 3201 पशु पहुंच चुके थे, जिनमें 2102 घोड़े और 917 ऊंट शामिल हैं। विभाग की टीम लगातार पशुओं की देखभाल और स्वास्थ्य परीक्षण में जुटी हुई है। हालांकि आधिकारिक तौर पर अभी तक पशुओं की खरीद-फरोख्त का रिकॉर्ड तैयार नहीं किया गया है, लेकिन मेले के धोरों में व्यापारी सक्रिय हो चुके हैं।
घोड़े और ऊंटों की बढ़ी आवक
पिछले कुछ दिनों में ऊंटों की आवक में कमी आई है, लेकिन रविवार से अश्व वंश यानी घोड़ों की संख्या तेजी से बढ़ी है। मारवाड़ी, नुगरा, पंजाबी और अन्य नस्लों के घोड़े मेले में पहुंच रहे हैं। पशुपालक इन घोड़ों की प्रजाति, कद-काठी और प्रशिक्षण के आधार पर उनकी कीमत तय कर रहे हैं। कई घोड़े तो लाखों में बिक रहे हैं, जिन पर विदेशी खरीदार भी नजर बनाए हुए हैं।
रेतीले मैदान के एक-एक हिस्से में टेंट सजे हैं और पशुपालक अपने पशुओं के साथ प्रतियोगिताओं की तैयारी में हैं। पशुपालन विभाग ने चिकित्सा टीमें तैनात कर रखी हैं जो लगातार मेला क्षेत्र में घूमकर व्यवस्था देख रही हैं।
25 लाख रुपए का भैंसा बना मेला मैदान का आकर्षण
इस बार मेले का सबसे बड़ा आकर्षण है — उज्जैन से आया 600 किलो वजनी भैंसा, जिसकी कीमत 25 लाख रुपए बताई जा रही है। यह भैंसा अपनी ऊंचाई और बनावट के कारण सभी की नजरों का केंद्र बन गया है। भैंसे की लंबाई करीब 8 फीट और ऊंचाई साढ़े पांच फीट है।
भैंसे के मालिक ने बताया कि वह पहली बार इस भैंसे को लेकर पुष्कर मेले में आए हैं। तीन साल से अधिक उम्र के इस भैंसे को तैयार करने में उन्होंने काफी मेहनत की है। रोजाना इसकी देखभाल और खुराक पर करीब 2500 रुपए तक का खर्च आता है।
भैंसे की खास डाइट: दूध, घी और अंडों से भरपूर आहार
भैंसे की डाइट बेहद खास है। पशुपालक के अनुसार, इस विशालकाय पशु को रोजाना बिनौला खल, चना चोकर, चनाचूरी, तेल, दूध, अंडे, घीकल्चर और लीवर टॉनिक दिया जाता है। इसके अलावा उसकी ताकत और चमक बनाए रखने के लिए उसे पौष्टिक आहार के साथ नियमित देखभाल दी जाती है।
भैंसे की चमकदार काली चमड़ी, मजबूत कद-काठी और संतुलित शरीर उसे भीड़ में अलग पहचान दिला रहे हैं। पर्यटक और पशुपालक दूर-दूर से इस भैंसे को देखने और उसके साथ फोटो खिंचवाने पहुंच रहे हैं।
पुष्कर मेला बना पशु व्यापार और परंपरा का संगम
पुष्कर का मेला न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि यह पशुपालकों के लिए आय का बड़ा अवसर भी होता है। यहां हर साल हजारों पशुओं की खरीद-फरोख्त होती है। मारवाड़ी घोड़े, ऊंट, भैंसे और गायें यहां के मुख्य आकर्षण रहते हैं।
राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों से पशुपालक अपने श्रेष्ठ पशु लेकर इस मेले में आते हैं। पशुपालन विभाग भी इस दौरान स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण और जागरूकता कार्यक्रम चलाता है ताकि पशुओं की सेहत पर कोई असर न पड़े।
पुष्कर की परंपरा और आधुनिकता का संगम
पुष्कर का यह मेला भारत की सांस्कृतिक विविधता का जीवंत उदाहरण है। जहां एक ओर रेतीले मैदानों में पारंपरिक वेशभूषा में आए ग्रामीण और व्यापारी पशु व्यापार कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पर्यटक इस परंपरा को कैमरे में कैद कर रहे हैं।
मेले में इस बार 25 लाख का भैंसा न केवल शक्ति और आकर्षण का प्रतीक बन गया है, बल्कि यह पशुपालन की आधुनिक सोच और देखभाल की मिसाल भी पेश कर रहा है।


