शोभना शर्मा। राजस्थान कांग्रेस में संगठनात्मक फेरबदल की प्रक्रिया तेज हो गई है। राज्य के सभी जिलों में नए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर मंथन अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है। पार्टी के भीतर इस पद को लेकर भारी खींचतान चल रही है क्योंकि इस बार कांग्रेस ने संगठन को युवाओं के हाथों में सौंपने का निर्णय लिया है। सूत्रों के अनुसार, इस रेस में 3 पूर्व मंत्री, 22 वर्तमान विधायक और 24 पूर्व विधायक शामिल हैं — यानी कुल 49 वरिष्ठ और प्रभावशाली नेता जिलाध्यक्ष पद की कमान संभालना चाहते हैं।
कांग्रेस ने तैयार किया तीन-तीन नामों का फाइनल पैनल
कांग्रेस हाईकमान ने पहले हर जिले से 6-6 नामों का पैनल तैयार करने के निर्देश दिए थे। प्रदेश कांग्रेस कमेटी (PCC) ने संगठन के स्तर पर गहन मंथन के बाद अब हर जिले से 3-3 नामों का फाइनल पैनल दिल्ली भेज दिया है। इन नामों पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी की मुहर लगने के बाद ही अंतिम सूची जारी की जाएगी। पार्टी सूत्रों का कहना है कि नवंबर के पहले सप्ताह में जिलाध्यक्षों के नामों की घोषणा संभव है।
जिलाध्यक्ष पद की बढ़ी अहमियत: युवाओं को मौका, वरिष्ठों में नाराजगी
कांग्रेस आलाकमान ने इस बार “उदयपुर डिक्लेरशन” के अनुसार संगठन में बदलाव का फैसला किया है। नई नीति के मुताबिक, पार्टी के 50 प्रतिशत पदाधिकारियों की उम्र 50 वर्ष से कम होगी। इस फैसले को पार्टी में युवा नेतृत्व को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। हालांकि, इस निर्णय से कई वरिष्ठ नेताओं में असंतोष भी देखने को मिल रहा है। उनका मानना है कि संगठन को मजबूत बनाने में वर्षों की मेहनत और अनुभव को एक झटके में नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “संगठन के लिए ऊर्जा और जोश जरूरी है, लेकिन अनुभव भी उतना ही अहम है। सिर्फ उम्र के आधार पर चयन सही दिशा नहीं है।”
कई जिलों में टकराव के आसार
नए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर कई जिलों में मतभेद उभरने लगे हैं। यह पद केवल संगठनात्मक नहीं बल्कि राजनीतिक प्रभाव वाला भी माना जाता है। दरअसल, विधानसभा चुनावों के दौरान टिकट वितरण में जिलाध्यक्ष की राय काफी मायने रखती है। यही कारण है कि कई मौजूदा विधायक और पूर्व मंत्री इस पद को संगठन और टिकट राजनीति दोनों में प्रभावशाली भूमिका के रूप में देख रहे हैं। कुछ जिलों में युवा नेताओं और पुराने नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई भी देखने को मिल रही है। पार्टी के भीतर यह टकराव आने वाले समय में स्थानीय स्तर पर गुटबाजी को जन्म दे सकता है।
कांग्रेस के लिए क्यों अहम है यह नियुक्ति
कांग्रेस में जिलाध्यक्ष अब सिर्फ औपचारिक पद नहीं रह गया है। यह नेता पार्टी की जमीनी रणनीति, बूथ प्रबंधन और संगठन विस्तार में प्रमुख भूमिका निभाता है। अब हर जिलाध्यक्ष को अपने जिले की राजनीतिक रिपोर्ट सीधे हाईकमान को भेजनी होगी, और यही रिपोर्ट टिकट तय करने में निर्णायक होगी। इस बदलाव का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संगठन और नेतृत्व के बीच सीधी संवाद प्रणाली बने और हर स्तर पर जवाबदेही तय हो।
हाईकमान का संकेत: संगठन में नई ऊर्जा का संचार
दिल्ली में चल रहे इस संगठनात्मक मंथन में पार्टी नेतृत्व ने यह संकेत भी दिया है कि राजस्थान में कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनावों से पहले नई ऊर्जा और एकजुटता के साथ उतरना चाहती है। राज्य में मुख्यमंत्री बदलने के बाद कांग्रेस का ध्यान अब जमीनी संगठन को मजबूत करने पर है। राहुल गांधी ने हाल ही में पार्टी पदाधिकारियों को संदेश दिया कि “संगठन वह रीढ़ है जिस पर चुनावी जीत टिकी होती है।” इसी दिशा में जिलाध्यक्षों की नई नियुक्तियां एक रणनीतिक पुनर्गठन मानी जा रही हैं।
युवा बनाम अनुभव: संतुलन साधना चुनौती
कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है — युवा नेतृत्व और अनुभवी नेताओं के बीच संतुलन बनाना। यदि पार्टी केवल युवाओं को तरजीह देती है, तो वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी संगठनात्मक स्थिरता पर असर डाल सकती है। वहीं यदि पुराने नेताओं को ज्यादा वरीयता दी जाती है, तो पार्टी की “युवा कांग्रेस” नीति कमजोर पड़ सकती है। राजस्थान जैसे बड़े और राजनीतिक रूप से सक्रिय राज्य में यह संतुलन बनाए रखना कांग्रेस के लिए अहम होगा।
संभावना: नवंबर के पहले सप्ताह में होगी घोषणा
सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस हाईकमान ने राजस्थान से भेजी गई सूची पर अंतिम निर्णय के लिए नवंबर के पहले सप्ताह की समयसीमा तय की है। जैसे ही दिल्ली में खड़गे और राहुल गांधी की मंजूरी मिलती है, राज्य कांग्रेस कमेटी को आधिकारिक घोषणा करने के निर्देश दिए जाएंगे। पार्टी का उद्देश्य है कि नए जिलाध्यक्षों की टीम दिसंबर तक पूरी तरह सक्रिय हो जाए, ताकि 2028 के विधानसभा चुनाव की तैयारियां संगठनात्मक स्तर पर शुरू की जा सकें।


