मनीषा शर्मा। अजमेर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में लंबे समय से चल रहे विवाद ने आखिरकार बड़ी कार्रवाई का रूप ले लिया है। स्वायत्त शासन विभाग ने परियोजना में हुई गंभीर अनियमितताओं और लापरवाही के आरोपों पर तत्कालीन मुख्य अभियंता नरेन्द्र अजमेरा को निलंबित कर दिया है। यह कार्रवाई उस समय की गई है जब सेवन वंडर प्रोजेक्ट को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है और अदालत ने वेटलैंड क्षेत्र में किए गए निर्माण को अवैध करार देते हुए उसे हटाने का आदेश दिया था।
सेवन वंडर प्रोजेक्ट: स्मार्ट सिटी का आकर्षक लेकिन विवादित हिस्सा
अजमेर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत सेवन वंडर पार्क का निर्माण किया गया था, जिसमें दुनिया के सात प्रसिद्ध अजूबों की प्रतिकृतियां बनाई गई थीं। इनमें पेरिस का एफिल टावर, मिस्र के पिरामिड, इटली की पीसा की झुकी मीनार, रोम का कोलोसियम, अमेरिका की स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी, ब्राजील के क्राइस्ट द रिडीमर की मूर्ति और भारत का ताजमहल शामिल थे। इस पार्क का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वर्ष 2022 में किया था। इसे अजमेर का नया पर्यटन केंद्र बनाने की योजना थी, लेकिन जल्द ही यह पर्यावरणीय और नियामक विवादों में घिर गया।
स्वायत्त शासन विभाग ने लिया एक्शन
विभागीय जांच में पाया गया कि सेवन वंडर प्रोजेक्ट में कई स्तरों पर नियमों की अनदेखी की गई। परियोजना की स्वीकृति और निर्माण के दौरान वेटलैंड नियमों का उल्लंघन हुआ, और कई आवश्यक अनुमतियां भी नहीं ली गईं। इस पर कार्रवाई करते हुए स्वायत्त शासन विभाग ने तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य अभियंता नरेन्द्र अजमेरा को निलंबित कर दिया। वर्तमान में वे एपीओ निदेशालय में मुख्य अभियंता के रूप में कार्यरत थे। विभाग के निदेशक जुईकर प्रतीक चंद्रशेखर ने कहा कि जांच में स्पष्ट हुआ कि प्रोजेक्ट निर्माण में तकनीकी और वित्तीय गड़बड़ियां की गईं, जिसके लिए जिम्मेदार अधिकारी पर कार्रवाई जरूरी थी। निलंबन के दौरान अजमेरा का मुख्यालय जयपुर स्थित स्थानीय निकाय निदेशालय में रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बढ़ी कार्रवाई की रफ्तार
सेवन वंडर प्रोजेक्ट का मामला एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। याचिकाकर्ता अशोक मलिक ने आनासागर झील के आसपास वेटलैंड क्षेत्र में हुए निर्माण को लेकर शिकायत दर्ज कराई थी। एनजीटी ने अगस्त 2023 में इन निर्माणों को हटाने का आदेश दिया था। इसके बाद जनवरी 2024 में अजमेर विकास प्राधिकरण (ADA) ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने साफ निर्देश दिए कि झील और उसके आसपास बने सेवन वंडर निर्माण को हटाया जाए क्योंकि यह पर्यावरणीय मानकों का उल्लंघन है।
निर्माण तोड़ने की कार्रवाई और बचा काम
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन ने 17 सितंबर तक सेवन वंडर हटाने का एफिडेविट दाखिल किया था। इसके बाद अजमेर विकास प्राधिकरण ने आनासागर झील के वेटलैंड क्षेत्र में बने संरचनाओं को तोड़ने की प्रक्रिया शुरू की। अब तक अधिकांश संरचनाएं ध्वस्त की जा चुकी हैं, लेकिन चारदीवारी, मलबा हटाने और खुदाई जैसे कार्य अभी बाकी हैं। विभागीय सूत्रों के अनुसार, यह काम आने वाले कुछ हफ्तों में पूरा किया जाएगा।
सस्पेंशन के बाद नए सवाल और जांच
अजमेर स्मार्ट सिटी लिमिटेड के तत्कालीन अभियंता नरेन्द्र अजमेरा पर कार्रवाई के बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि परियोजना की स्वीकृति और निगरानी में शामिल अन्य अधिकारियों की क्या भूमिका रही। कई पर्यावरणविदों और स्थानीय संगठनों का कहना है कि यह केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि सिस्टम की विफलता का मामला है। जांच में यह भी देखा जाएगा कि परियोजना के वित्तीय प्रबंधन, निविदा प्रक्रिया और निर्माण गुणवत्ता में किस स्तर पर लापरवाही हुई।
वेटलैंड क्षेत्र में निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा था कि आनासागर झील के आसपास का वेटलैंड क्षेत्र संरक्षित है और यहां किसी भी प्रकार का व्यावसायिक या मनोरंजक निर्माण पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन है। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि भविष्य में ऐसी किसी भी परियोजना को स्वीकृति देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) को अनिवार्य बनाया जाए।
4 अगस्त की सुनवाई टली, अगली तारीख तय नहीं
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट और आनासागर वेटलैंड से जुड़े मामले की आखिरी सुनवाई 4 अगस्त को निर्धारित थी, लेकिन केस उस दिन लिस्टेड नहीं हो सका। अगली सुनवाई की तारीख अभी तय नहीं हुई है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अजमेर प्रशासन को कोर्ट के निर्देशों का पालन सुनिश्चित करना होगा, अन्यथा अवमानना की कार्रवाई भी संभव है।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट पर उठे सवाल
अजमेर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की यह घटना अब राज्य के अन्य शहरों में चल रहे स्मार्ट सिटी मिशन की पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्मार्ट सिटी की अवधारणा में सौंदर्यीकरण के नाम पर कई बार पर्यावरणीय और सामाजिक संतुलन की अनदेखी हो जाती है। राज्य सरकार ने संकेत दिया है कि भविष्य में सभी स्मार्ट सिटी परियोजनाओं की स्वतंत्र तकनीकी जांच कराई जाएगी ताकि ऐसी गड़बड़ियों की पुनरावृत्ति न हो।


