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जोधपुर जेल में बंद सोनम वांगचुक से एडवाइजरी बोर्ड आज करेगा मुलाकात

जोधपुर जेल में बंद सोनम वांगचुक से एडवाइजरी बोर्ड आज करेगा मुलाकात

मनीषा शर्मा।  जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद पर्यावरण कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की हिरासत पर आज एक महत्वपूर्ण सुनवाई होने जा रही है। एडवाइजरी बोर्ड के तीन सदस्य शुक्रवार को जेल पहुंचेंगे, जहां वे राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत उनकी हिरासत के औचित्य पर विचार करेंगे। यह सुनवाई वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो द्वारा राज्य सरकार, केंद्र सरकार और एडवाइजरी बोर्ड को सौंपे गए प्रतिनिधित्व (Representation) के बाद हो रही है। सूत्रों के अनुसार, एडवाइजरी बोर्ड के तीन सदस्य — अध्यक्ष एवं पूर्व न्यायाधीश एम.के. हुजूरा, जिला न्यायाधीश मनोज परिहार और सामाजिक कार्यकर्ता स्पल जयेश अंगमों — शुक्रवार सुबह 10:30 बजे जोधपुर सेंट्रल जेल में वांगचुक से मुलाकात करेंगे। वहीं, इस दौरान वांगचुक के एनएसए के तहत लगाए गए आरोपों और हिरासत की वैधता पर चर्चा होगी।

एनएसए के तहत हिरासत को चुनौती

सोनम वांगचुक को कुछ सप्ताह पहले राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत हिरासत में लिया गया था। इस कार्रवाई का देशभर में व्यापक विरोध हुआ है। कई संगठनों और बुद्धिजीवियों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में भी चल रही है, वहीं वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो कानूनी लड़ाई का नेतृत्व कर रही हैं। गीतांजलि ने अपने प्रतिनिधित्व में यह दावा किया कि वांगचुक की हिरासत प्रक्रिया में गंभीर खामियां हैं। उनका कहना है कि वांगचुक के बयानों और वीडियो को संदर्भ से बाहर तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, जिससे गलत निष्कर्ष निकाले गए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वांगचुक के वीडियो का उद्देश्य केवल पर्यावरण संरक्षण और जनहित के मुद्दों को उजागर करना था, न कि कोई भड़काऊ या असंवैधानिक संदेश देना। गीतांजलि ने यह भी कहा कि सरकार ने एनएसए लगाने के लिए जिन आधारों का हवाला दिया है, वे “कमजोर और निराधार” हैं। उन्होंने एडवाइजरी बोर्ड से वांगचुक की तुरंत रिहाई की मांग की है।

क्या है एडवाइजरी बोर्ड?

एडवाइजरी बोर्ड (सलाहकार बोर्ड), राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) 1980 के तहत गठित एक संवैधानिक निकाय है। इसका उद्देश्य निरोधात्मक हिरासत (Preventive Detention) के मामलों की समीक्षा करना होता है। जब किसी व्यक्ति को एनएसए के तहत हिरासत में लिया जाता है, तो सरकार को तीन सप्ताह के भीतर उसका मामला एडवाइजरी बोर्ड के समक्ष पेश करना होता है। बोर्ड तीन सदस्यों से मिलकर बनता है — ये सदस्य हाईकोर्ट के मौजूदा या पूर्व न्यायाधीश होते हैं। इनकी नियुक्ति राज्य के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जाती है, ताकि बोर्ड की निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।

बोर्ड की प्रक्रिया और शक्तियां

  1. सरकार को हिरासत आदेश के सभी दस्तावेज, हिरासत में लिए गए व्यक्ति का प्रतिनिधित्व और जिला प्रशासन की रिपोर्ट बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करनी होती है।

  2. एडवाइजरी बोर्ड को सात सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपनी होती है।

  3. बोर्ड को यह अधिकार होता है कि वह सरकार या किसी भी अधिकारी से अतिरिक्त जानकारी मांग सके।

  4. हिरासत में लिए गए व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से सुनवाई का अवसर दिया जाता है।

  5. बोर्ड की कार्यवाही गोपनीय होती है और इसमें वकीलों को भाग लेने की अनुमति नहीं होती।

अगर एडवाइजरी बोर्ड यह पाता है कि व्यक्ति की हिरासत के लिए पर्याप्त कारण नहीं हैं, तो सरकार को उसे तुरंत रिहा करना होता है।

संविधान में एडवाइजरी बोर्ड का महत्व

भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(4) के तहत यह व्यवस्था की गई है कि किसी भी व्यक्ति को एनएसए जैसे निवारक कानूनों के तहत अनिश्चित काल तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता। एडवाइजरी बोर्ड इस शक्ति के दुरुपयोग पर संवैधानिक नियंत्रण के रूप में काम करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला न केवल वांगचुक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ा है, बल्कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पर्यावरण आंदोलन के भविष्य से भी संबंधित है।

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