मनीषा शर्मा। राजस्थान की सियासत में इस समय कांग्रेस संगठन को लेकर एक बड़ी हलचल चल रही है। प्रदेश में पार्टी जिलाध्यक्षों के चयन की प्रक्रिया अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। कांग्रेस आलाकमान के निर्देश पर प्रदेश के 50 जिलों में रायशुमारी का काम लगभग पूरा हो चुका है। इस प्रक्रिया के तहत हर जिले में कार्यकर्ताओं, स्थानीय नेताओं और नागरिकों से संवाद कर योग्य नामों की सूची तैयार की गई है।
कांग्रेस ने इस बार चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और संगठन को मजबूत करने पर विशेष जोर दिया है। दिल्ली से भेजे गए केंद्रीय पर्यवेक्षक हर जिले में छह नामों का पैनल फाइनल कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, 30 केंद्रीय पर्यवेक्षक इस समय अंतिम दौर की रायशुमारी में जुटे हुए हैं, ताकि जिलाध्यक्षों की घोषणा जल्द की जा सके।
सिफारिशों पर नहीं होगा चयन
कांग्रेस आलाकमान ने इस बार एक बड़ा फैसला लिया है। जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में किसी भी सांसद, विधायक या वरिष्ठ नेता की सिफारिश को नहीं माना जाएगा। पार्टी का मानना है कि अब संगठन में व्यक्तिगत सिफारिशों और जातीय समीकरणों से आगे बढ़कर योग्यता और संगठन के प्रति समर्पण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इससे कई नेताओं की चिंता भी बढ़ गई है, क्योंकि पहले जिला स्तर पर इन सिफारिशों का प्रभाव काफी अधिक होता था।
कई विधायक, पूर्व मंत्री और पूर्व प्रत्याशी भी इस बार जिलाध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हैं। लेकिन नई नीति के चलते उनकी सिफारिशें निर्णायक भूमिका में नहीं रहेंगी। यह बदलाव संगठन को नई दिशा देने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
छह नामों का पैनल जाएगा केंद्र के पास
चयन प्रक्रिया के तहत प्रत्येक केंद्रीय पर्यवेक्षक अपने जिले में कम से कम सात दिन तक रहकर विभिन्न समूहों से बातचीत कर रहे हैं। वे ब्लॉक स्तर से लेकर बूथ स्तर तक संगठन के कार्यकर्ताओं से रायशुमारी कर रहे हैं। इस संवाद के बाद पर्यवेक्षक छह नामों की अनुशंसा के साथ अपनी रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को सौंपेंगे। इसके बाद प्रदेश में जिलाध्यक्षों की औपचारिक घोषणा की जाएगी।
यह प्रक्रिया इसलिए भी अहम है क्योंकि इसके माध्यम से संगठन की जमीनी पकड़ को और मजबूत करने का प्रयास किया जा रहा है। पार्टी इस बार जिलाध्यक्षों को संगठन में अधिक शक्ति और जिम्मेदारी देने की तैयारी में है।
AICC की रणनीति
AICC ने कहा है कि पार्टी में नई ऊर्जा का संचार जिलाध्यक्षों से ही शुरू किया जाएगा। इसी वजह से चयन प्रक्रिया को पारदर्शी और सहभागी बनाने पर जोर दिया जा रहा है। केंद्रीय पर्यवेक्षक और प्रदेश कांग्रेस कमेटी मिलकर एक ऐसा ढांचा तैयार करने में जुटे हैं, जो निचले स्तर से लेकर शीर्ष नेतृत्व तक संवाद को प्रभावी बना सके।
जिलाध्यक्षों को मिलेगी बड़ी भूमिका
राहुल गांधी द्वारा तय किए गए नए फॉर्मूले के अनुसार जिलाध्यक्षों को इस बार संगठन में अधिक शक्ति दी जाएगी। उन्हें केवल जिला स्तर तक सीमित नहीं रखा जाएगा, बल्कि उन्हें पार्टी की रणनीति और निर्णय प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका दी जाएगी।