मनीषा शर्मा। उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय (MLSU) में कुलपति प्रोफेसर सुनीता मिश्रा के बयान से शुरू हुआ विवाद अब थमने का नाम नहीं ले रहा। 12 सितंबर को गुरुनानक कॉलेज, उदयपुर में आयोजित एक सेमिनार के दौरान उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब को “कुशल प्रशासक” बताया था। इस बयान के बाद पूरे मेवाड़ क्षेत्र में विरोध की लहर दौड़ गई। छात्रों, राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने इसे इतिहास और संस्कृति का अपमान करार दिया।
भीलवाड़ा में गूंजा विवाद
विवाद की आंच अब भीलवाड़ा तक पहुंच गई है। भूगोल परिषद के राष्ट्रीय अधिवेशन में पहुंचे कोटा विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर बीपी सारस्वत ने इस बयान पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई। मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि कुलपति सुनीता मिश्रा का यह बयान मेवाड़ और उसके गौरवशाली इतिहास का अपमान है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “केवल माफी मांगना पर्याप्त नहीं है। उन्हें इस्तीफा देना चाहिए और अपने शब्दों पर पश्चाताप भी करना चाहिए।”
औरंगजेब को आक्रांता बताया
प्रोफेसर बीपी सारस्वत ने अपने वक्तव्य में औरंगजेब को आक्रांता बताते हुए कहा कि उसने तलवार के बल पर जबरन धर्म परिवर्तन करवाया था। ऐसे व्यक्ति को कुशल प्रशासक कहना ऐतिहासिक तथ्यों और जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। सारस्वत का कहना था कि एक विश्वविद्यालय की कुलपति से अपेक्षा की जाती है कि वह विद्यार्थियों को सही दिशा और प्रेरणा दें, न कि विवादित बयान देकर समाज को आहत करें।
सुनीता मिश्रा को भेजा गया छुट्टी पर
विवाद गहराने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए कुलपति प्रो. सुनीता मिश्रा को 30 दिन की छुट्टियों पर भेज दिया है। हालांकि, छात्रों और संगठनों का कहना है कि यह कदम केवल औपचारिकता है और असली मांग उनके पद से हटाए जाने की है।
एबीवीपी का विरोध जारी
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) लगातार इस मामले में प्रदर्शन कर रही है। एबीवीपी के प्रतिनिधियों का कहना है कि “कुलपति को छुट्टी पर भेजना हमारी मांग नहीं थी। हमारी एकमात्र मांग है कि उन्हें उनके पद से हटाया जाए। जब तक यह नहीं होगा, विरोध-प्रदर्शन जारी रहेगा और विश्वविद्यालय के कॉलेजों को खुलने नहीं दिया जाएगा।”
छात्रों का आक्रोश
गुरुनानक कॉलेज के सेमिनार में दिए गए बयान के बाद से ही छात्रों में गहरा आक्रोश देखने को मिल रहा है। उनका कहना है कि माफी मांगने भर से यह मामला खत्म नहीं हो सकता क्योंकि यह मेवाड़ के गौरवपूर्ण इतिहास और वहां के शौर्य का अपमान है। छात्र संगठन मांग कर रहे हैं कि कुलपति जैसे पद पर बैठे व्यक्ति को इस तरह का गैर-जिम्मेदाराना बयान देना शोभा नहीं देता।
12 सितंबर का बयान और उसका असर
यह विवाद 12 सितंबर से शुरू हुआ जब प्रोफेसर सुनीता मिश्रा ने अपने भाषण में औरंगजेब को एक कुशल प्रशासक बताया। उन्होंने कहा था कि शासन व्यवस्था में उसकी दक्षता को नकारा नहीं जा सकता। इस कथन के सामने आते ही विरोध की लहर उठ खड़ी हुई। जैसे-जैसे बयान मीडिया और सोशल मीडिया पर फैला, वैसा-वैसा आक्रोश बढ़ता गया।
माफी के बाद भी नहीं थमा मामला
मामले के तूल पकड़ने पर प्रोफेसर मिश्रा ने सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगी। उन्होंने कहा कि उनके बयान को गलत संदर्भ में लिया गया है और उनकी मंशा किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने की नहीं थी। बावजूद इसके, छात्रों और शिक्षाविदों का कहना है कि माफी इस अपमान की भरपाई नहीं कर सकती और उन्हें तुरंत पद से हटाया जाना चाहिए।
मेवाड़ की ऐतिहासिक संवेदनशीलता
विशेषज्ञ मानते हैं कि मेवाड़ का इतिहास बलिदान, वीरता और आत्मसम्मान से भरा हुआ है। महाराणा प्रताप जैसे महान योद्धा और मेवाड़ की जनता सदियों से अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष करती रही है। ऐसे में औरंगजेब को कुशल प्रशासक बताना वहां की जनता की भावनाओं के साथ सीधा खिलवाड़ माना जा रहा है।