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हनुमान बेनीवाल का बयान: “थानेदार सेवा के लिए नहीं, लूटने के लिए बनते हैं”

हनुमान बेनीवाल का बयान: “थानेदार सेवा के लिए नहीं, लूटने के लिए बनते हैं”

शोभना शर्मा। राजस्थान में एसआई भर्ती रद्द होने के फैसले पर रोक लगने के बाद राजनीतिक बयानबाजी और तेज हो गई है। आरएलपी संयोजक और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने इस मामले पर बड़ा बयान दिया है, जिससे एक नई बहस छिड़ गई है।

बेनीवाल ने भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी का मुद्दा उठाते हुए कहा कि इस परीक्षा में करीब 600 फर्जी उम्मीदवार थे जबकि ईमानदार उम्मीदवारों की संख्या महज 260 के आसपास थी। ऐसे में अगर भर्ती रद्द भी हो जाए तो इसमें क्या परेशानी है। उन्होंने अभ्यर्थियों को संदेश देते हुए कहा, “फिर से 1800 वैकेंसी आ रही है, तो एक साल और तैयारी कर लो। हम भी तो 25 साल से संघर्ष कर रहे हैं, कौन सा मुख्यमंत्री बन गए। तुम भी एक साल संघर्ष कर लो।”

“नौकरी सबकुछ नहीं होती”

नागौर सांसद ने नौकरी के महत्व को कम करते हुए कहा कि नौकरी जीवन का सबकुछ नहीं होती। उन्होंने तीखे शब्दों में कहा, “कोई ईमानदारी से सेवा करने के लिए थानेदार थोड़े बनता है। कोई सेवा के लिए थोड़े आता है। वो तो यही सोचता है कि महीने में कितना मिलेगा और मलाई कितनी होगी।”

इस बयान ने पुलिस व्यवस्था और भर्ती प्रक्रिया दोनों पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं।

“थानेदार सेवा नहीं, लूटने के लिए बनते हैं”

हनुमान बेनीवाल ने सीधे तौर पर पुलिस तंत्र पर आरोप लगाया कि अधिकांश लोग थानेदार बनने के पीछे सेवा का भाव नहीं रखते बल्कि निजी लाभ और कमाई ही उनका उद्देश्य होता है। उन्होंने कहा कि साल 1997-98 में जिनके पास आर्थिक स्थिति कमजोर थी, वही लोग आज थानेदार बनने के बाद करोड़ों की संपत्ति के मालिक बन चुके हैं।

उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा, “हम जैसे लोग तो आज भी पुरानी गाड़ियां चला रहे हैं, लेकिन थानेदार बनने वाले लोग देखते ही देखते करोड़पति हो जाते हैं।”

“सिर्फ 2 फीसदी लोग ही सेवा करते हैं”

बेनीवाल ने सिस्टम की खामियों को उजागर करते हुए कहा कि परीक्षा पास करने के बाद अधिकतर लोग केवल अच्छे रिश्ते और ज्यादा कमाई की सोच में रहते हैं। सेवा के भाव से पुलिस विभाग में आने वाले लोगों की संख्या बेहद कम है। उन्होंने कहा, “सेवा करने के लिए तो सिर्फ 2 फीसदी लोग ही आते हैं, बाकी का मकसद कुछ और ही होता है।”

भर्ती विवाद पर राजनीति

राजस्थान में एसआई भर्ती का मुद्दा पिछले लंबे समय से विवादों में रहा है। गड़बड़ियों और फर्जीवाड़े के आरोपों के चलते भर्ती प्रक्रिया रद्द की गई थी, लेकिन हाल ही में अदालत से इस फैसले पर रोक लग गई है। इसके बाद से ही छात्र और अभ्यर्थियों के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है।

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