शोभना शर्मा। राजस्थान का झालावाड़ जिला मुख्यालय इन दिनों किसानों के महापड़ाव का गवाह बना हुआ है। हजारों किसान अपनी 25 सूत्रीय मांगों को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं और अनिश्चितकालीन धरना दे रहे हैं। दिन में किसान नारेबाजी और भाषणों के जरिए अपनी आवाज बुलंद करते हैं, तो रात ढलते ही यही सड़कें उनका घर बन जाती हैं। खुले आसमान के नीचे, ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के पास किसान रात गुजार रहे हैं। कोई दरी पर सोता है, तो कोई अपने साथ लाए बिस्तर पर आराम करता है। सड़कों पर ही बड़ी कढ़ाइयों में खाना पक रहा है और सभी किसान सामूहिक रूप से भोजन कर रहे हैं।
यह आंदोलन अचानक शुरू नहीं हुआ है। किसानों का कहना है कि वे लंबे समय से अपनी मांगों को सरकार के सामने रख रहे थे, लेकिन लगातार अनसुनी होने के बाद उन्हें सड़क पर उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा। किसानों ने साफ कर दिया है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होंगी या राज्य का कृषि मंत्री खुद धरना स्थल पर आकर उनसे बातचीत नहीं करेगा, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा।
किसानों की प्रमुख मांगें
हालांकि किसानों की कुल 25 मांगें हैं, लेकिन कुछ प्रमुख मांगें इस आंदोलन की नींव बनी हुई हैं।
फसल का लाभकारी मूल्य – किसानों की सबसे अहम मांग है कि फसल की लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य तय किया जाए। उनका कहना है कि खेती अब घाटे का सौदा बन गई है और जब तक मेहनत का उचित मूल्य नहीं मिलेगा, तब तक उनकी आर्थिक स्थिति सुधरना मुश्किल है।
MSP की कानूनी गारंटी – किसान चाहते हैं कि उनकी पूरी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदी जाए और इसके लिए सरकार कानूनी गारंटी दे।
फसलों का 100% मुआवजा – प्राकृतिक आपदा, अतिवृष्टि या सूखा जैसी परिस्थितियों में फसल को हुए नुकसान का सौ फीसदी मुआवजा देने की मांग की गई है।
बिजली विभाग का निजीकरण रोका जाए – किसानों को डर है कि निजीकरण और स्मार्ट मीटर लगाने से उनके बिजली बिलों में भारी बढ़ोतरी होगी। इसलिए वे चाहते हैं कि मौजूदा रियायतें जारी रहें और स्मार्ट मीटर लगाने की योजना रोकी जाए।
मनरेगा को खेती से जोड़ना – किसान चाहते हैं कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को खेती के कामों से जोड़ा जाए। इससे छोटे और सीमांत किसानों को मजदूरी के बोझ से राहत मिलेगी।
विशेष सत्र बुलाना – किसानों का आग्रह है कि विधानसभा में किसानों के मुद्दों पर विशेष सत्र बुलाया जाए और स्थायी समाधान खोजा जाए।
झालावाड़ में आंदोलन का माहौल
महापड़ाव स्थल का दृश्य किसानों की प्रतिबद्धता और जज्बे को दिखाता है। शाम ढलते ही किसान सामूहिक भोजन करते हैं और फिर भजन-कीर्तन व लोकगीतों के जरिए एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते हैं। आंदोलन में न केवल युवा किसान, बल्कि बुजुर्ग किसान और महिलाएं भी बड़ी संख्या में शामिल हैं। बुजुर्ग किसानों का कहना है कि यह लड़ाई सिर्फ वर्तमान पीढ़ी की नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की है।
आंदोलनकारी किसानों ने प्रशासन को स्पष्ट संदेश दिया है कि वे सिर्फ अधिकारियों से बातचीत नहीं करेंगे। उनकी शर्त है कि कृषि मंत्री धरना स्थल पर आएं और सीधे संवाद करें।
सरकार और प्रशासन की स्थिति
अब तक सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच बातचीत की कोई ठोस प्रगति नहीं हो पाई है। प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं और स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए है। हालांकि, किसानों की कठोर शर्तों के कारण बातचीत का रास्ता आसान नहीं दिख रहा।
राज्य सरकार का कहना है कि वह किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन बातचीत का तरीका तय होना बाकी है। इधर, किसानों ने साफ कर दिया है कि यदि सरकार गंभीर नहीं हुई, तो आंदोलन और व्यापक स्तर पर फैलाया जाएगा।