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खाटूश्यामजी में जलझूलनी एकादशी महापर्व की तैयारी शुरू

खाटूश्यामजी में जलझूलनी एकादशी महापर्व की तैयारी शुरू

शोभना शर्मा।  राजस्थान का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल खाटूश्यामजी धाम इस समय भक्तिभाव और उत्साह से सराबोर है। आने वाले बुधवार को जलझूलनी एकादशी का महापर्व मनाया जाएगा। इस अवसर पर देशभर से लगभग 2 से 3 लाख श्याम भक्त खाटू धाम पहुंचकर बाबा श्याम के दर्शन करेंगे। श्रीश्याम मंदिर कमेटी ने भक्तों की भारी भीड़ को देखते हुए तैयारियां शुरू कर दी हैं। प्रशासन भी सुरक्षा, यातायात और व्यवस्थाओं को लेकर पूरी तरह सतर्क है ताकि भक्तों को किसी प्रकार की असुविधा न हो।

नई पोशाकें भेजने की परंपरा

जलझूलनी एकादशी से पहले श्रीश्याम मंदिर कमेटी की ओर से खाटू और आसपास के मंदिरों में भगवान के लिए नई पोशाकें भेजी जाती हैं। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है।  माना जाता है कि इस दिन भगवान श्याम बाबा और अन्य मंदिरों के देवता नई पोशाक धारण कर जलविहार करते हैं। श्रीश्याम मंदिर कमेटी ने स्पष्ट किया कि जैसे जन्माष्टमी पर पहले प्रसाद सभी मंदिरों में भेजा जाता है, वैसे ही जलझूलनी एकादशी पर नई पोशाकें भिजवाने की परंपरा है।

परंपरा का इतिहास

ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन काल में यह परंपरा राजा-महाराजाओं के समय से शुरू हुई थी। उस दौर में शाही दरबार की ओर से मंदिरों में भगवान की पोशाक और शृंगार सामग्री भेजी जाती थी। अब खाटू में यह परंपरा श्रीश्याम मंदिर कमेटी द्वारा निभाई जाती है। मान्यता है कि आज के समय में खाटू नरेश बाबा श्याम ही राजा माने जाते हैं, इसलिए उन्हीं के आदेश से मंदिर कमेटी यह जिम्मेदारी निभाती है।

जलझूलनी एकादशी का धार्मिक महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जलझूलनी एकादशी का अत्यधिक महत्व है। इसे परिवर्तिनी एकादशी, पद्मा एकादशी और वामन एकादशी भी कहा जाता है। शास्त्रों में उल्लेख है कि इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हुए करवट बदलते हैं। माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मोक्ष और पुण्य की प्राप्ति

धार्मिक मान्यता है कि जलझूलनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत जीवन के समस्त पापों का नाश कर सीधा भगवान विष्णु के परम लोक बैकुंठ की प्राप्ति कराता है। इसी दिन सभी नगर और गांवों में भगवान के मंदिरों से देव प्रतिमाओं को गाजे-बाजे के साथ निकाला जाता है। इसे जलविहार की परंपरा कहा जाता है। भगवान नई पोशाक धारण करके जलविहार करने के बाद पुनः मंदिर में विराजते हैं।

खाटू धाम में उत्सव का माहौल

खाटूश्यामजी धाम में जलझूलनी एकादशी को लेकर इस समय उत्सव जैसा माहौल है। देशभर से लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचेंगे। मंदिर कमेटी और प्रशासन ने मिलकर भक्तों के लिए दर्शन की विशेष व्यवस्थाएँ की हैं। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अलग-अलग प्रवेश और निकास मार्ग बनाए गए हैं। श्रद्धालुओं को दर्शन में सुविधा मिले, इसके लिए कतारबद्ध व्यवस्था, पीने के पानी, चिकित्सा सुविधाओं और सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

भक्तों की आस्था का पर्व

भक्तों के लिए जलझूलनी एकादशी केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शांति और पुण्य प्राप्ति का माध्यम भी है। मान्यता है कि इस दिन खाटू धाम में बाबा श्याम के दर्शन मात्र से जीवन के कष्ट दूर होते हैं। देशभर से आने वाले भक्त अपनी श्रद्धा और विश्वास के साथ बाबा श्याम के दरबार में हाजिरी लगाते हैं और नई पोशाकों में सजे बाबा श्याम का जलविहार देखते हैं।

खाटूश्यामजी का जलझूलनी एकादशी महापर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह आस्था, परंपरा और संस्कृति का अनूठा संगम है। नई पोशाकें भेजने की परंपरा, भगवान का जलविहार और लाखों भक्तों की श्रद्धा इस पर्व को खास बनाती है।

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