मनीषा शर्मा। राजस्थान की राजधानी जयपुर इस समय भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और उत्साह से सराबोर है। जन्माष्टमी का पर्व जैसे ही नजदीक आता है, शहर की रंगत बदल जाती है। खासकर गोविंद देव जी मंदिर, जो जयपुर का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर माना जाता है, इस अवसर पर दिव्यता और आस्था का प्रतीक बन जाता है। इस बार जन्माष्टमी (Janmashtami 2025) पर मंदिर परिसर और आसपास की गलियां ऐसे सजीं मानो जयपुर एक बार फिर ‘छोटी काशी’ में तब्दील हो गया हो।
गोविंद देव जी का विशेष श्रृंगार
भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप गोविंद देव जी का जन्मोत्सव यहां परंपरागत वैभव और आस्था से मनाया जा रहा है। ठाकुर जी और राधे रानी का विशेष पीतांबर श्रृंगार भक्तों के आकर्षण का केंद्र रहा। आभूषणों और पारंपरिक परिधान में सजे ठाकुर जी के दर्शन करते ही भक्तों का हृदय भक्ति से भर उठता है। मंदिर में गूंजते भजनों और कीर्तन की मधुरता इस उत्सव को और अधिक भव्य बनाती है। श्रद्धालु इस श्रृंगार को केवल अलंकरण नहीं, बल्कि प्रभु की दिव्य उपस्थिति का प्रतीक मानते हैं।
31 तोपों की गूंज ने बनाया अद्भुत क्षण
जन्माष्टमी की रात 12 बजे का समय, जब श्रीकृष्ण का अवतरण माना जाता है, इस बार भी अविस्मरणीय बन गया। जैसे ही घड़ी ने मध्यरात्रि का संकेत दिया, मंदिर परिसर और पूरे जयपुर में 31 तोपों की गूंज से वातावरण गूंज उठा। यह परंपरा हर वर्ष भक्तों को याद दिलाती है कि कृष्ण का जन्म केवल एक धार्मिक घटना नहीं, बल्कि धर्म, प्रेम और करुणा के नए युग की शुरुआत का प्रतीक है। इस क्षण को देखने और अनुभव करने के लिए लाखों भक्त जयपुर आते हैं, जिनके चेहरों पर भक्ति और आनंद साफ झलकता है।
श्रद्धालुओं की आस्था और सेवाभाव
जयपुर के इस उत्सव की विशेषता केवल श्रृंगार या अभिषेक ही नहीं, बल्कि भक्तों का सेवाभाव भी है। मंदिर के बाहर से लेकर गर्भगृह तक श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी रहती हैं। कई वृद्धजन और अशक्त भक्त भी यहां दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर के सेवक और स्वयंसेवक उन्हें सम्मानपूर्वक गर्भगृह तक पहुंचाते हैं। 90 वर्षीय मोहिनी देवी, जो पिछले 60 वर्षों से प्रतिदिन ठाकुर जी के दर्शन करती हैं, इस बार भी अपने प्रिय प्रभु को देखकर भावविभोर हो गईं। वे कहती हैं—“प्रभु मेरे लिए भी घर बना लेना, जहां आपका ही धाम हो।” इस तरह की आस्था इस उत्सव की आत्मा है।
897 किलो अभिषेक से सजी महाआरती
इस वर्ष जन्माष्टमी पर होने वाला अभिषेक भव्यता का नया कीर्तिमान रच रहा है। कुल 897 किलो दूध, दही, घी, बूरा और शहद से ठाकुर जी का अभिषेक किया जा रहा है। यह प्रक्रिया न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भक्तों की सामूहिक श्रद्धा और भक्ति का भी प्रतीक है। अभिषेक के दौरान वातावरण में फैली खुशबू और मंत्रोच्चार भक्तों को आत्मिक शांति और दिव्यता का अनुभव कराते हैं।
वज्रनाभ और प्रतिमाओं की पौराणिक गाथा
गोविंद देव जी मंदिर की पहचान केवल इसकी आस्था और सजावट तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे जुड़ी पौराणिक गाथाएं भी इसे खास बनाती हैं। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के परपोते वज्रनाभ ने श्रीकृष्ण की तीन मूर्तियां बनाई थीं। गोविंद देव जी की प्रतिमा में मुखारविंद से दर्शन होते हैं, जबकि गोवीनाथ जी की प्रतिमा कंधे से कमर तक और मदनमोहन जी की प्रतिमा पदकमल तक के दर्शन कराती है। यह कथा भक्तों को यह एहसास दिलाती है कि प्रभु अलग-अलग रूपों में अपनी झलक देते हैं और हर रूप भक्ति के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है।
‘छोटी काशी’ की पहचान
जन्माष्टमी पर जयपुर का यह स्वरूप मानो पूरी दुनिया के लिए आध्यात्मिक संदेश देता है। सजे हुए मंदिर, गलियों में गूंजते भजन, श्रद्धालुओं का सैलाब और दिव्यता से भरा वातावरण इसे ‘छोटी काशी’ का दर्जा दिलाता है। यहां आने वाले हर भक्त के लिए यह अनुभव अविस्मरणीय होता है।


