मनीषा शर्मा। राजस्थान सरकार द्वारा रोडवेज बसों के किराए में 10% की बढ़ोतरी के बाद राज्य के यातायात परिदृश्य में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। अब यात्रियों का रुझान सरकारी बसों से हटकर निजी बसों की ओर बढ़ गया है। पहले जहां लोग लंबी दूरी के लिए रोडवेज बसों को प्राथमिकता देते थे, वहीं अब किराया बढ़ने के बाद कई यात्री निजी स्लीपर और सिटिंग बसों में सफर करना ज्यादा किफायती मान रहे हैं।
किराया बढ़ोतरी का सीधा असर कोटा, जयपुर, उदयपुर, भोपाल, इंदौर और चंडीगढ़ जैसे रूट पर दिख रहा है। उदाहरण के लिए, कोटा से जयपुर का किराया पहले 250 रुपये था, जो अब 275 रुपये हो गया है। इसी तरह कोटा से उदयपुर का किराया 290 रुपये से बढ़कर 320 रुपये, कोटा से भोपाल 360 रुपये से बढ़कर 380 रुपये और कोटा से चंडीगढ़ 838 रुपये से बढ़कर 880 रुपये हो गया है। यह बढ़ोतरी यात्रियों के बजट पर असर डाल रही है, जिससे वे सस्ते विकल्प की तलाश में निजी बसों की ओर रुख कर रहे हैं।
निजी बसों में किराया स्थिर, यात्रियों का भरोसा कायम
निजी बस ऑपरेटरों की ओर से फिलहाल किराया बढ़ाने का कोई निर्णय नहीं लिया गया है। राजस्थान बस ऑपरेटर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष सत्यनारायण साहू के अनुसार, निजी बसों में फिलहाल पुराने किराए ही लागू हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि अधिक किराया लेने पर तो जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन कम किराया लेने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। यही कारण है कि निजी बसें अपनी सेवाएं पुराने किराए पर ही दे रही हैं, जिससे वे यात्रियों के बीच एक सस्ता विकल्प बनी हुई हैं।
साहू ने यह भी बताया कि सरकारी और निजी दोनों बसों का किराया राजस्थान सरकार ही तय करती है। सुप्रीम कोर्ट के 1986 के आदेश के मुताबिक, राजस्थान रोडवेज और निजी बसें अलग-अलग नहीं मानी जातीं, बल्कि दोनों को समान परिवहन सेवा प्रदाता के रूप में देखा जाता है। इसलिए किराया निर्धारण में एक समान नीति अपनाई जाती है।
स्लीपर बसों में यात्रियों की बढ़ती दिलचस्पी
स्लीपर कोच बस एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक चांदना के अनुसार, रोडवेज बसों के किराए में बढ़ोतरी का फायदा स्लीपर और एसी बस ऑपरेटरों को मिल रहा है। वर्तमान में कोटा से जयपुर का नॉन-एसी सिटिंग किराया 250 रुपये, एसी सिटिंग 300 रुपये, नॉन-एसी स्लीपर 400 रुपये और एसी स्लीपर 500 रुपये रखा गया है। चूंकि रोडवेज के मुकाबले इन बसों में ज्यादा आराम और लचीलापन मिलता है, यात्री अब इन विकल्पों की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं।
रोडवेज के सामने स्टाफ की गंभीर कमी
किराया बढ़ोतरी के साथ-साथ राजस्थान रोडवेज के सामने स्टाफ की कमी भी एक बड़ी चुनौती बनकर उभर रही है। कोटा डिपो में ड्राइवर और कंडक्टर के कई पद खाली हैं। उपलब्ध ड्राइवरों में से कुछ मेडिकल कारणों से ड्यूटी पर नहीं हैं, जिससे बस संचालन में बाधा आ रही है।
कोटा डिपो के पास कुल 89 बसें हैं, लेकिन इनके संचालन के लिए स्वीकृत 137 ड्राइवर पदों में केवल 92 ही उपलब्ध हैं, जिनमें से 18 ड्राइवर मेडिकल अनफिट हैं। इसी तरह 165 कंडक्टर पदों में सिर्फ 51 स्थायी कंडक्टर कार्यरत हैं। बाकी की जरूरत संविदा या अस्थायी कर्मचारियों से पूरी की जा रही है। परिणामस्वरूप, कई रूटों पर बसों को रद्द करना पड़ता है, जिससे यात्रियों का भरोसा और भी कमजोर हो रहा है।
घाटे में बढ़ोतरी का खतरा
किराया बढ़ोतरी का उद्देश्य रोडवेज के वित्तीय घाटे को कम करना था, लेकिन यात्रियों के निजी बसों की ओर शिफ्ट होने से उल्टा असर होने की संभावना है। निजी बसों की सुविधाजनक सेवाएं और स्थिर किराया रोडवेज के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ा रहे हैं। इससे रोडवेज की आय में गिरावट आ सकती है, खासकर तब, जब स्टाफ की कमी के चलते बस संचालन प्रभावित हो रहा है।


