शोभना शर्मा। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के महासचिव और राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने केंद्र सरकार द्वारा घोषित 2027 में शुरू होने वाली जातिगत जनगणना की मंशा पर गहरा संदेह जताया है। मंगलवार को जयपुर में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने केंद्र सरकार की नीतियों पर निशाना साधते हुए कहा कि जिस तरह से जनगणना प्रक्रिया को टाला गया है, वह देश के सामाजिक और आर्थिक ढांचे के प्रति सरकार की असंवेदनशीलता को दर्शाता है।
सचिन पायलट ने कहा कि जनगणना केवल जाति जानने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह एक गहन सामाजिक और आर्थिक अध्ययन का जरिया है, जिससे यह समझा जा सकता है कि देश का नागरिक किस स्थिति में जीवन यापन कर रहा है। उन्होंने कहा कि जब तक हमें यह नहीं मालूम कि देश में लोग किस शिक्षा स्तर पर हैं, उनकी आर्थिक स्थिति क्या है, सरकारी नौकरियों में कितनी हिस्सेदारी है, और सरकारी योजनाओं का उन्हें कितना लाभ मिल रहा है—तब तक समाज के पिछड़े वर्गों के लिए ठोस नीति बनाना संभव नहीं है।
उन्होंने सवाल किया कि सरकार आखिर 2027 तक जनगणना की प्रक्रिया क्यों टाल रही है, जबकि यह कार्य हर दस वर्षों में नियमित रूप से होना चाहिए। पायलट ने कहा कि 2021 में जनगणना होनी थी, लेकिन अब अधिसूचना 2026-2027 की तिथि को घोषित कर रही है, जिससे स्पष्ट होता है कि सरकार इसमें रुचि नहीं ले रही है। यह संविधानिक जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं है।
सचिन पायलट ने यह भी कहा कि सरकार की यह देरी सामाजिक न्याय और नीति-निर्माण की प्रक्रिया को पीछे धकेल रही है। उन्होंने केंद्र पर आरोप लगाया कि वह संवेदनशील विषयों से बचने के लिए जानबूझकर जनगणना को टाल रही है, ताकि सटीक आंकड़े सामने न आएं, जिनके आधार पर आरक्षण, बजट वितरण और विकास योजनाओं की दिशा तय होती है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में पायलट ने तेलंगाना का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां की सरकार ने अत्यंत समझदारी के साथ जनगणना कराई है। वहां एनजीओ, तकनीकी विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ताओं की भागीदारी से सटीक और विस्तृत डेटा एकत्र किया गया, जिसे नीतियों में प्रत्यक्ष रूप से लागू किया जा रहा है। पायलट ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को भी उसी तरह की पारदर्शिता और संवेदनशीलता के साथ काम करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस का स्पष्ट मत है कि जनगणना के जरिए समाज के सभी तबकों की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया जाए, खासकर पिछड़े वर्गों की भागीदारी और पहुंच को नीतिगत रूप से दर्ज किया जाए। पायलट ने सरकार से तत्काल जनगणना शुरू करने की मांग की और कहा कि इसके लिए आवश्यक संसाधन, योजना और मानव संसाधन तुरंत जुटाए जाएं।
ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने सोमवार को एक अधिसूचना जारी की, जिसमें बताया गया कि जातिगत जनगणना दो चरणों में की जाएगी। पहला चरण 1 अक्टूबर 2026 से जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में शुरू होगा, जबकि दूसरा चरण 1 मार्च 2027 से पूरे भारत में शुरू किया जाएगा। इस अधिसूचना के अनुसार, जनगणना की संदर्भ तिथि भारत के लिए 1 मार्च 2027 रात 12 बजे और हिमालयी क्षेत्रों के लिए 1 अक्टूबर 2026 रात 12 बजे निर्धारित की गई है।
कांग्रेस नेता ने यह भी चेतावनी दी कि अगर सरकार ने इस दिशा में शीघ्र और ठोस कदम नहीं उठाए, तो इससे समाज में असंतोष बढ़ेगा और सामाजिक योजनाओं का आधार कमजोर होगा। उन्होंने यह भी कहा कि जनगणना केवल आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि यह सामाजिक समावेशन और लोकतांत्रिक शासन की रीढ़ होती है।
पायलट ने सरकार से यह भी अपील की कि जनगणना को राजनीतिक मुद्दा न बनाकर इसे सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में देखा जाए। उन्होंने कहा कि जितनी जल्दी सरकार जनगणना कराएगी, उतनी ही जल्दी देश की वास्तविक सामाजिक संरचना सामने आएगी और नीतियां अधिक सटीक बनाई जा सकेंगी।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद देशभर में यह बहस तेज हो गई है कि आखिर क्यों केंद्र सरकार जातिगत जनगणना को लगातार टाल रही है और क्या यह सामाजिक न्याय से जुड़ी नीतियों को प्रभावित करने की साजिश है। कांग्रेस ने संकेत दिए हैं कि अगर सरकार इस पर जल्द कदम नहीं उठाएगी तो पार्टी स्तर पर आंदोलनात्मक रास्ता अपनाया जा सकता है।