शोभना शर्मा। झोपड़ी में रहने वाला एक छात्र, जिसके पिता शादी समारोहों में जूठे बर्तन धोते हैं, जिसने पढ़ाई के साथ-साथ दिहाड़ी मजदूरी भी की—इस बार NEET 2025 परीक्षा में सफलता की ऐसी कहानी लिखी है, जिसने पूरे राजस्थान का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। हम बात कर रहे हैं 19 वर्षीय श्रवण कुमार की, जो बायतु उपखंड के खट्टू (नरेवा) गांव का रहने वाला है। श्रवण ने NEET 2025 परीक्षा में 700 में से 556 अंक प्राप्त कर ऑल इंडिया में 9754वीं रैंक हासिल की है। वहीं OBC कैटेगरी में उसकी रैंक 4071 रही है।
झोपड़ी में मिला रिजल्ट, पिता बोले- अब बर्तन नहीं मांजने पड़ेंगे
14 जून 2025 को जैसे ही NEET का रिजल्ट आया, श्रवण के पिता रेखाराम सियाग अपनी झोपड़ी की मरम्मत कर रहे थे। बेटे की सफलता की खबर सुनकर वे भावुक हो गए और बोले—“अब शायद बर्तन नहीं मांजने पड़ेंगे।” रेखाराम आजीविका के लिए शादी-ब्याह के कार्यक्रमों में जूठे बर्तन धोते हैं। खेती का मौसम हो तो खेती भी करते हैं, लेकिन आर्थिक हालात इतने खराब हैं कि परिवार आज भी कच्चे घर यानी झोपड़ी में ही रहता है।
बालोतरा से दिहाड़ी मजदूरी करते हुए पढ़ाई की शुरुआत
श्रवण ने सरकारी स्कूल रोजिया नाडा माधासर से 10वीं पास की, जिसमें उसे 97% अंक प्राप्त हुए। इसके बाद आर्थिक तंगी के चलते पढ़ाई छोड़नी पड़ी और वह बालोतरा में दिहाड़ी मजदूरी करने लगा। यही वक्त था जब उसका जीवन मोड़ पर आया। शिक्षक चिमनाराम ने उसे “फिफ्टी विलेजर्स” नामक संस्था के बारे में बताया। संस्था ने उसकी प्रतिभा को पहचानते हुए स्कॉलरशिप टेस्ट के जरिए चयन किया और पूरी पढ़ाई की जिम्मेदारी उठाई।
तीन प्रयासों की मेहनत से मिली सफलता
पहला प्रयास (2023): 12वीं के साथ ही NEET की परीक्षा दी, लेकिन 519 अंक ही आ सके, सीट नहीं मिली।
दूसरा प्रयास (2024): इस बार मेहनत से 620 अंक लाए, लेकिन कटऑफ ज्यादा चला गया, फिर भी सीट नहीं मिली।
तीसरा प्रयास (2025): लगातार प्रेरणा और शिक्षक भरत सारण व चिमनाराम के कहने पर फिर से तैयारी की, और आखिरकार 556 अंक लाकर सफलता पाई।
फिफ्टी विलेजर्स संस्था बनी आधार
बाड़मेर स्थित “फिफ्टी विलेजर्स” संस्था आर्थिक रूप से कमजोर मेधावी छात्रों को चयन प्रक्रिया के तहत मदद करती है। संस्था की सहायता से ही श्रवण ने 11वीं व 12वीं की पढ़ाई की, साथ ही हॉस्टल में रहकर नीट की तैयारी की। संस्था न केवल रहने-खाने का खर्च उठाती है, बल्कि छात्रों को शैक्षणिक संसाधन भी उपलब्ध कराती है। श्रवण की मेहनत और संस्था का सहयोग, दोनों ने मिलकर यह मुकाम संभव किया।
स्मार्टफोन बना पढ़ाई का हथियार
2023 में श्रवण की मां को राज्य सरकार की एक स्कीम के तहत स्मार्टफोन मिला था। श्रवण ने उसी स्मार्टफोन के जरिए अपनी पढ़ाई जारी रखी।
यूट्यूब वीडियो देखकर कठिन सवाल हल करता, डाउट्स क्लियर करता और परीक्षा की तैयारी करता था। छुट्टियों में जब वह गांव आता तो यही फोन उसकी ऑनलाइन क्लास और टेस्ट प्रैक्टिस का जरिया बन जाता।
श्रवण की सोच: डॉक्टर बनकर करना है गांव की सेवा
श्रवण का सपना अब सरकारी डॉक्टर बनने का है। वह कहता है—”मेरे गांव में अभी भी स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी है। लोगों को 40-50 किलोमीटर दूर अस्पताल जाना पड़ता है। मैं चाहता हूं कि पढ़-लिखकर अपने गांव में रहूं और गरीबों की सेवा करूं।” उसने यह भी कहा कि अगर फिफ्टी विलेजर्स संस्था, शिक्षक चिमनाराम और भरत सारण जैसे लोग मदद नहीं करते, तो शायद वह भी मजदूरी में ही उलझा रह जाता।
ग्रामीणों और संस्था ने बांटी खुशियाँ
NEET रिजल्ट आते ही श्रवण के गांव में खुशियों का माहौल बन गया। ग्रामीण और संस्था के सदस्य मिठाई लेकर झोपड़ी पहुंचे और श्रवण को गले लगाकर उसकी मेहनत को सराहा। संस्था के प्रतिनिधियों ने कहा कि “यह सफलता गांव के हर गरीब बच्चे के लिए एक उम्मीद है।”