शोभना शर्मा। राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य में सड़क विस्तार और शहरी सौंदर्यीकरण के नाम पर हो रही अंधाधुंध पेड़ कटाई को लेकर एक अहम और दूरदर्शी फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि यदि किसी विकास कार्य के दौरान किसी पेड़ को काटना आवश्यक हो, तो उसके स्थान पर कम से कम दस छायादार पौधे लगाए जाएं। यह आदेश व्यापक जनहित में दिया गया है ताकि आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ और ऑक्सीजन युक्त वातावरण मिल सके।
पेड़ समाज के लिए मौन सेवक हैं: अदालत
यह आदेश राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस अनूप ढंढ की अदालत द्वारा दिया गया है। अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पेड़ समाज को सालों तक बिना कुछ मांगे लाभ पहुंचाते हैं। वे न केवल ऑक्सीजन प्रदान करते हैं बल्कि पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए एक पेड़ काटने के बदले दस पेड़ लगाने की शर्त न्यायसंगत और पर्यावरण हितैषी है।
कोटपूतली नगर परिषद को सौंपी जिम्मेदारी
सुनवाई के दौरान अदालत ने विशेष रूप से कोटपूतली नगर परिषद को निर्देश दिए कि यदि किसी निर्माण कार्य के दौरान पेड़ों या पौधों को हटाना जरूरी हो, तो पहले उनकी गिनती की जाए और सूची तैयार की जाए। इसके बाद प्रत्येक कटे गए पेड़ या पौधे के बदले आसपास के सार्वजनिक क्षेत्रों में दस छायादार पौधे लगाए जाएं। साथ ही इस कार्य की प्रगति और पूर्णता की रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत की जाए।
मास्टर प्लान को लेकर भी सख्त रुख
इस मामले में अधिवक्ता आशीष शर्मा ने अदालत को बताया कि कोटपूतली नगर परिषद ने सड़क चौड़ीकरण के नाम पर वैध रूप से रह रहे लोगों को बेदखल कर दिया है, जबकि मास्टर प्लान में निर्धारित सड़क की चौड़ाई 60 फीट से कम है। इसके बावजूद नगर परिषद 80 फीट चौड़ी सड़क बना रही है। इस पर अदालत ने मास्टर प्लान को योजनाबद्ध विकास का दस्तावेज बताते हुए कहा कि इसे प्राधिकरण की मर्जी के अनुसार नहीं बदला जा सकता।
वैध दस्तावेज होने पर मिलेगा मुआवजा या वैकल्पिक भूमि
अदालत ने सरकार को 15 दिन के भीतर एक समिति गठित करने का आदेश दिया है। यह समिति उन प्रभावित लोगों की सुनवाई करेगी, जिनके पास भूमि से संबंधित वैध दस्तावेज हैं। यदि किसी की भूमि का अधिग्रहण आवश्यक है, तो उन्हें जिला मूल्यांकन समिति (DLC) दर के अनुसार मुआवजा दिया जाए अथवा सरकारी योजना के तहत उन्हें वैकल्पिक भूमि आवंटित की जाए। यह निर्देश इसलिए दिया गया ताकि जनसुनवाई में न्याय हो सके और किसी का अधिकार न छीना जाए।
व्यापक जनहित की दिशा में एक बड़ा कदम
इस निर्णय को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक मील का पत्थर माना जा रहा है। जहां एक ओर शहरों का विस्तार और सड़कों का विकास आवश्यक है, वहीं दूसरी ओर पेड़-पौधों और हरियाली का संरक्षण भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यह आदेश विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन साधने का उत्कृष्ट उदाहरण बन सकता है।
“विकास आवश्यक है, लेकिन वह प्रकृति की कीमत पर नहीं होना चाहिए।”
विशेषज्ञों ने सराहा हाईकोर्ट का निर्णय
पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस फैसले का स्वागत किया है। उनका मानना है कि यह आदेश आने वाले समय में अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बनेगा। अदालत का यह निर्देश न केवल प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की दिशा में है, बल्कि यह भावी पीढ़ियों के जीवन को भी सुरक्षित करने की दिशा में एक साहसिक प्रयास है।