शोभना शर्मा। राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर उथल-पुथल मच गई है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक कंवरलाल मीणा को तीन साल की सजा सुनाए जाने के बावजूद अब तक उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त नहीं की गई है। इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस हमलावर हो गई है और सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने विधानसभा अध्यक्ष पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि अगर बुधवार तक इस विषय में कोई फैसला नहीं लिया गया, तो वे सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका (कंटेम्प्ट पेटिशन) दायर करेंगे।
टीकाराम जूली ने कहा कि जिस तरह से विधानसभा अध्यक्ष ने अब तक कार्रवाई नहीं की है, वह स्पष्ट रूप से पक्षपात को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि यदि दो साल से अधिक की सजा किसी जनप्रतिनिधि को मिलती है तो उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जानी चाहिए, जैसा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मामले में हुआ था। लेकिन बीजेपी विधायक के मामले में जानबूझकर देरी की जा रही है।
जूली ने राजस्थान के मुख्यमंत्री पर भी हमला बोला और कहा कि ऐसा लगता है जैसे उन्होंने राज्य में कानून व्यवस्था को समाप्त करने का निर्णय कर लिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि विधानसभा अध्यक्ष समितियों के सभापति भी अपनी मर्जी से बदल रहे हैं और यह पूरी प्रक्रिया गैर-संवैधानिक है। जूली ने यह भी कहा कि यह बेहद शर्मनाक है कि एक सजायाफ्ता विधायक विधानसभा का सदस्य रहते हुए जेल में आत्मसमर्पण कर रहा है। यह घटना लोकतंत्र के लिए काला धब्बा है।
उन्होंने याद दिलाया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत सजा होने के 20 दिन बीत चुके हैं, इसके बावजूद विधानसभा अध्यक्ष ने सदस्यता रद्द नहीं की, जो यह दर्शाता है कि उनके ऊपर किसी प्रकार का दबाव है। उन्होंने कहा कि यह न सिर्फ संवैधानिक जिम्मेदारी से भटकाव है बल्कि नैतिक मूल्यों के साथ भी धोखा है।
वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी स्पीकर पर सीधा निशाना साधा। उन्होंने कहा कि संवैधानिक पद पर बैठकर अगर कोई व्यक्ति संविधान की ही अवहेलना करे तो यह लोकतंत्र के लिए घातक संकेत हैं। डोटासरा ने कहा कि एक अन्य विधायक, जिन पर एसीबी में एफआईआर दर्ज है, उनके मामले को तो स्पीकर ने तुरंत सदाचार समिति को भेजकर सदस्यता खत्म करने की प्रक्रिया शुरू कर दी, लेकिन कंवरलाल मीणा को सजा होने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
डोटासरा ने सवाल उठाया कि आखिर विधानसभा अध्यक्ष किसके दबाव में आकर यह फैसला नहीं ले पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर दो दिन का समय और मांग रहे हैं, तो दो दिन में ऐसा क्या बदल जाएगा? यह पूरी तरह से प्रक्रिया को लटकाने का तरीका है। डोटासरा ने विधानसभा के वरिष्ठ सदस्यों और जनता से भी अपील की कि वे इस विषय में स्पष्ट रुख अपनाएं, क्योंकि जनता यह जानना चाहती है कि कानून सबके लिए समान क्यों नहीं है।