शोभना शर्मा। राजस्थान की राजनीति में जहां आमतौर पर सत्ता समीकरणों और गठजोड़ की चर्चा होती है, वहीं इन दिनों राज्य विधानसभा में ‘नैतिकता’ और ‘मर्यादा’ के मुद्दे ने गहराई से जगह बना ली है। दो विधायकों के मामले ने न केवल राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है, बल्कि विधानसभा की गरिमा और कार्यसंस्कृति पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। एक तरफ भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) ने बागीदौरा से बीएपी विधायक जयकृष्ण पटेल को रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा है, तो दूसरी तरफ भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा की विधायकी पर आपराधिक सजा के कारण संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
बीस लाख की रिश्वत और विधानसभा की गरिमा पर सवाल
बागीदौरा विधायक जयकृष्ण पटेल पर ACB ने आरोप लगाया है कि उन्होंने विधानसभा में एक सवाल न पूछने की एवज में 20 लाख रुपये रिश्वत ली। यह मामला न सिर्फ उनके व्यक्तिगत आचरण पर, बल्कि पूरे सदन की साख पर भी सीधा प्रहार है। पटेल को रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया, और अब यह मामला विधानसभा की सदाचार समिति के पास है। यह समिति सिर्फ औपचारिकता नहीं निभाती, बल्कि विधायकों के नैतिक आचरण की गहन जांच करती है। समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी आगे की कार्रवाई करेंगे।
कंवरलाल मीणा की विधायकी अधर में
दूसरी ओर, भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा को एक मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा तीन साल की सजा सुनाई जा चुकी है। उन पर एसीडीएम पर पिस्टल तानने और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे गंभीर आरोप हैं। मीणा ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की थी, लेकिन वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज करते हुए दो सप्ताह में ट्रायल कोर्ट के समक्ष समर्पण के आदेश दिए हैं। विधानसभा सचिवालय ने उन्हें 7 मई तक स्पष्टीकरण देने को कहा था, लेकिन संतोषजनक जवाब न मिलने के कारण अब अध्यक्ष कभी भी उनकी सदस्यता रद्द करने का फैसला ले सकते हैं।
स्पीकर देवनानी का सख्त संदेश
विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने स्पष्ट कर दिया है कि अब सदन की गरिमा से खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने कहा, “सदन की मर्यादा सर्वोपरि है, और कोई भी विधायक अगर उसे लांघता है तो उसे जवाबदेह बनाया जाएगा।” देवनानी ने कानूनी सलाहकारों और राज्य के महाधिवक्ता से सलाह लेकर यह सुनिश्चित किया है कि अब विशेषाधिकार की आड़ लेकर दोषी विधायक नहीं बच पाएंगे।
नैतिकता बनाम सियासत: एक नई कसौटी
आज की राजनीति में जहां सत्ता की लालसा नैतिकता को पीछे छोड़ देती है, वहीं देवनानी का यह रुख विधानसभा में एक नई लकीर खींचने जैसा है। सदाचार समिति अब सिर्फ एक औपचारिक संस्था नहीं, बल्कि विधायकों के व्यवहार का निर्णायक पैमाना बनती जा रही है। यह घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि आने वाले समय में विधायकों की ‘सियासी परीक्षा’ सिर्फ जनता नहीं, बल्कि सदन की मर्यादा की कसौटी पर भी होगी। जो इस परीक्षा में फेल होंगे, उनके खिलाफ अब विधानसभा अध्यक्ष की कलम भी रुकेगी नहीं।