शोभना शर्मा। जयपुर के प्रतिष्ठित सवाई मानसिंह (SMS) हॉस्पिटल के सर्जरी वार्ड में 1 मई को हुई एक बड़ी लापरवाही ने प्रदेश के चिकित्सा तंत्र पर सवाल खड़े कर दिए हैं। वार्ड की छत का एक हिस्सा गिरने से दो मरीज गंभीर रूप से घायल हो गए। मामले की गंभीरता को देखते हुए खुद मुख्यमंत्री को इसमें दखल देना पड़ा। इसके बाद देर रात तक प्रशासनिक हलचल तेज रही और कई जिम्मेदार अधिकारियों को उनके पदों से हटा दिया गया।
कैसे हुआ हादसा?
1 मई की सुबह, हॉस्पिटल के सर्जरी विभाग के 3H वार्ड में अचानक छत का एक बड़ा हिस्सा भरभराकर गिर गया। इस हादसे में दो मरीजों को गंभीर चोटें आईं। एक मरीज के चेहरे पर गहरी चोटें आईं और उसे ऑपरेशन थिएटर में ले जाकर टांके लगाने पड़े। वहीं दूसरे मरीज को भी चेहरे पर चोट आई और उसकी स्थिति भी चिंताजनक रही।
सीएम के संज्ञान में आया मामला
यह मामला जैसे ही मुख्यमंत्री के स्तर तक पहुंचा, उन्होंने तत्काल चिकित्सा विभाग की कार्यप्रणाली की समीक्षा की। मुख्यमंत्री ने इस घटना पर कड़ी नाराजगी जताई और देर रात ही जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए।
जिम्मेदार अधिकारी हटाए गए
मुख्य लेखाधिकारी सियाराम मीणा, जिन्हें वित्तीय प्रबंधन में दोषी पाया गया, को उनके मूल विभाग भेजा गया।
PWD की AEN अंजू माथुर, जो रख-रखाव में लापरवाह पाई गईं, को भी हटाकर उनके मूल विभाग में भेज दिया गया।
डॉ. राशिम कटारिया, जो मेडिकल ऑफिसर इंचार्ज के तौर पर PWD कार्यों को देख रहे थे, उन्हें भी हटाया गया।
इन सभी अधिकारियों पर प्रथम दृष्टया लापरवाही और अनियमितता बरतने के आरोप लगे।
जयपुर CMHO द्वितीय भी पद से हटाए गए
इस घटना के साथ ही जयपुर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) द्वितीय डॉ. हंसराज बधालिया को भी पद से हटा दिया गया। उनके खिलाफ पहले से ही कई शिकायतें लंबित थीं, जिनमें क्षेत्र की पीएचसी और सीएचसी की खराब स्थिति, जनता व जनप्रतिनिधियों से दूरी और भ्रष्टाचार के आरोप शामिल थे।
अब उनकी जगह डिप्टी सीएमएचओ डॉ. सुरेंद्र गोयल को चार्ज सौंपा गया है।
CMHO प्रथम पर भी गंभीर आरोप
जयपुर CMHO प्रथम डॉ. रवि शेखावत पर भी टेंडर प्रक्रिया में मिलीभगत और नियमों की अवहेलना के आरोप लग चुके हैं। हालांकि मंत्री से नजदीकी होने के कारण उनके खिलाफ अभी तक कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई है। यह भी आरोप है कि उन्हें पहले कोर्ट के आदेश पर हटाया गया था, लेकिन बाद में फिर से सिफारिश के आधार पर नियुक्त कर दिया गया।
चिकित्सा मंत्री और अधिकारियों की भूमिका भी सवालों में
इस पूरे घटनाक्रम ने चिकित्सा मंत्री और संबंधित अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल यह उठ रहा है कि लगातार शिकायतों और जमीनी स्तर पर अव्यवस्था के बावजूद कार्रवाई में इतनी देरी क्यों हुई? और यदि मुख्यमंत्री खुद हस्तक्षेप न करते तो क्या कोई जवाबदेही तय होती?