शोभना शर्मा। देश की राजनीति में बहुप्रतीक्षित मुद्दा जातिगत जनगणना आखिरकार एक नए मोड़ पर पहुंच गया है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा जातिगत जनगणना करवाने की घोषणा किए जाने के बाद यह विषय फिर से राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है। इस फैसले के तुरंत बाद कांग्रेस नेताओं ने इसे राहुल गांधी की जीत करार दिया और पार्टी मुख्यालय में मिठाइयां बांटकर और ढोल-नगाड़ों के साथ जश्न मनाया।
राजस्थान के प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में गुरुवार को इस मुद्दे पर एक संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसमें पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम के दौरान कांग्रेसजनों ने “राहुल गांधी जिंदाबाद” और “जातिगत जनगणना लागू करो” जैसे नारे लगाते हुए केंद्र सरकार के इस निर्णय को जनता की जीत बताया।
राहुल गांधी के संघर्ष की जीत
कांग्रेस नेताओं ने साफ कहा कि यह निर्णय राहुल गांधी की राजनीतिक दृढ़ता और जनता से जुड़ाव का परिणाम है। उन्होंने वर्षों से संसद और जनसभाओं में जातिगत जनगणना की मांग को प्रमुखता से उठाया और इसे सामाजिक न्याय का अहम माध्यम बताया।
कांग्रेस के प्रदेश नेताओं ने कहा कि राहुल गांधी लगातार यह सवाल उठा रहे थे कि यदि जनसंख्या के अनुसार योजनाएं बनती हैं, तो फिर जातिगत आंकड़े क्यों नहीं जुटाए जा रहे हैं? केंद्र सरकार को अंततः जनता के दबाव और कांग्रेस की जनचेतना की मुहिम के आगे झुकना पड़ा।
हरसहाय यादव ने उठाई आरक्षण सीमा हटाने की मांग
कांग्रेस ओबीसी विभाग के प्रदेश अध्यक्ष हरसहाय यादव ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि यह राहुल गांधी की दृढ़ इच्छाशक्ति और वंचित वर्गों के लिए किए गए संघर्ष की जीत है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने संसद में बार-बार सरकार से सवाल किया कि आखिर जातिगत जनगणना से क्यों डर रही है सरकार?
हरसहाय यादव ने कहा कि अब जब सरकार जातिगत जनगणना की घोषणा कर चुकी है, तो अगला कदम 50 प्रतिशत आरक्षण की संवैधानिक सीमा को हटाने का होना चाहिए। इससे ओबीसी और वंचित वर्गों को उनकी वास्तविक संख्या के अनुरूप प्रतिनिधित्व और अवसर मिल सकेंगे।
वंचितों की भागीदारी की दिशा में बड़ा कदम
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता स्वर्णिम चतुर्वेदी, महासचिव जसवंत यादव और वरिष्ठ नेता राजेंद्र सेन ने कहा कि यह फैसला देश के सामाजिक समीकरणों में संतुलन स्थापित करने की दिशा में बड़ा कदम है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी की आवाज ने पूरे देश में जागरूकता फैलाई और अब ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी’ की दिशा में वास्तविक काम शुरू होगा।
कांग्रेस नेताओं का मानना है कि जातिगत जनगणना केवल आंकड़े इकट्ठा करने का कार्य नहीं है, बल्कि यह नीति निर्माण और संसाधनों के न्यायसंगत बंटवारे की आधारशिला है। इससे सरकारी योजनाएं, नौकरियां, शिक्षा और प्रतिनिधित्व में वंचित वर्गों की स्थिति को बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा और उन्हें वास्तविक भागीदारी मिल सकेगी।
सियासी हलकों में चर्चा
केंद्र सरकार के इस फैसले पर कांग्रेस का खुलकर जश्न मनाना राजनीतिक विश्लेषकों के बीच भी चर्चा का विषय बना हुआ है। जहां एक ओर भाजपा इसे देशहित में लिया गया फैसला बता रही है, वहीं कांग्रेस इसे अपने राजनीतिक दबाव और जनआंदोलन की सफलता के रूप में प्रचारित कर रही है।