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ज्ञानदेव आहूजा बोले- “मैं माफी नहीं मांगूंगा”, जूली पर भी साधा निशाना

ज्ञानदेव आहूजा बोले- “मैं माफी नहीं मांगूंगा”, जूली पर भी साधा निशाना

शोभना शर्मा।  भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता ज्ञानदेव आहूजा एक बार फिर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं। श्रीराम मंदिर में गंगाजल छिड़कने के बाद उत्पन्न हुए विवाद पर पार्टी द्वारा स्पष्टीकरण मांगे जाने के बावजूद उन्होंने माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका विरोध किसी दलित समाज से नहीं, बल्कि कांग्रेस नेताओं से है।

आहूजा ने कहा, “मेरा विरोध कांग्रेसियों से है, जिन्होंने रामसेतु को काल्पनिक बताया और राम जन्मभूमि पर सवाल उठाए। यह विरोध एक विचारधारा का है, किसी जाति या समाज का नहीं।” उन्होंने कहा कि वे दलितों के समर्थक हैं और उनके लिए अपने विधानसभा क्षेत्र में कई योजनाएं और सुविधाएं शुरू कर चुके हैं।

टीकाराम जूली पर तंज

ज्ञानदेव आहूजा ने अपने विवादित बयान में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, “अगर टीकाराम जूली खुद को दलित नेता मानते हैं, तो फिर वे 36 बिरादरी का समर्थन क्यों मांगते हैं? यह एक राजनीतिक भ्रम पैदा करने की कोशिश है।” ज्ञात हो कि टीकाराम जूली हाल ही में अलवर स्थित श्रीराम मंदिर में दर्शन के लिए गए थे। उनके जाने के बाद आहूजा ने वहां गंगाजल का छिड़काव किया, जिसे लेकर राजनीतिक हलकों में काफी विवाद हुआ। कांग्रेस ने इसे दलित विरोधी कदम बताया, वहीं बीजेपी ने भी आहूजा से स्पष्टीकरण मांगा था।

बीजेपी के स्पष्टीकरण पर भी सवाल

आहूजा ने न केवल अपने बयान पर अडिग रहने की बात कही, बल्कि उन्होंने अपनी ही पार्टी के रुख पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि पार्टी को बिना पक्ष सुने स्पष्टीकरण नहीं मांगना चाहिए था। “कार्यक्रम में भंवर जितेंद्र सिंह भी आने वाले थे, लेकिन विवाद के डर से नहीं आए,” उन्होंने बताया। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने पार्टी को क्या जवाब भेजा है, तो उन्होंने यह कहने से इनकार कर दिया। उन्होंने केवल इतना कहा कि जो जवाब भेजा गया है, वह पार्टी नेतृत्व के लिए है, न कि सार्वजनिक चर्चा के लिए।

क्या कहता है राजनीतिक विश्लेषण?

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राजस्थान की जातिगत राजनीति और भाजपा-कांग्रेस के बीच वैचारिक टकराव का हिस्सा भी है। जहां कांग्रेस इसे दलित अपमान का मामला बना रही है, वहीं भाजपा के लिए यह आंतरिक अनुशासन और चुनावी छवि की परीक्षा बनता जा रहा है।

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