शोभना शर्मा। राजस्थान में ग्राम पंचायत चुनाव एक बार फिर देरी का शिकार हो गए हैं। इस बार देरी का मुख्य कारण राज्यभर में जारी परिसीमन और पंचायतों के पुनर्गठन की प्रक्रिया है। राजस्थान की 6,000 से अधिक ग्राम पंचायतों में आगामी जून से पहले चुनाव कराए जाने की कोई संभावना नहीं है। यह जानकारी राज्य सरकार ने राजस्थान हाईकोर्ट में दायर एक एडिशनल एफिडेविट के माध्यम से दी है। सरकार ने हाईकोर्ट को अवगत कराया कि वर्तमान में प्रदेश में पंचायतों एवं नगरपालिकाओं का पुनर्गठन और सीमांकन (परिसीमन) की प्रक्रिया चल रही है। मार्च में इस संबंध में अधिसूचना जारी की गई थी और यह प्रक्रिया मई से जून के बीच तक चलेगी। जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक चुनाव की तिथियों की घोषणा संभव नहीं है।
हाईकोर्ट में यह जवाब उस जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान सामने आया, जिसमें प्रदेश की 6,759 ग्राम पंचायतों में चुनावों की देरी को लेकर सवाल उठाए गए थे। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने 4 फरवरी के अपने आदेश के संदर्भ में सरकार से स्पष्ट चुनाव कार्यक्रम प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे। उस समय सरकार की ओर से कोई ठोस टाइमलाइन नहीं दी गई थी, लेकिन अब अतिरिक्त शपथपत्र के जरिए यह स्वीकार कर लिया गया है कि परिसीमन प्रक्रिया के बिना चुनाव कराना संभव नहीं है। राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत यह स्पष्टीकरण अगली सुनवाई में कोर्ट के रुख को तय करने में अहम भूमिका निभा सकता है। यदि कोर्ट सरकार के तर्कों से संतुष्ट नहीं होता, तो चुनाव की प्रक्रिया को जल्द करवाने के लिए दबाव बना सकता है।
परिसीमन और पुनर्गठन की इस प्रक्रिया को लेकर कई जिलों में विरोध भी देखने को मिला है। कई गांवों को शहरी निकायों—जैसे नगर परिषद और नगर निगम—में शामिल कर दिया गया है, जबकि कई पुरानी पंचायतों को समाप्त किया गया है और नई पंचायतों का गठन किया गया है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में नाराजगी का माहौल है, क्योंकि लोग अपनी पारंपरिक पंचायतों के खत्म होने और प्रशासनिक बदलावों से असहमति जता रहे हैं। इन सबके बीच सवाल यह है कि क्या राज्य सरकार आगामी पंचायत चुनावों को सुचारू रूप से और समय पर आयोजित कर पाएगी या फिर यह प्रक्रिया और अधिक जटिल होकर लंबी खिंचती जाएगी। सभी की निगाहें अब हाईकोर्ट की अगली सुनवाई और सरकार के अगले कदम पर टिकी हैं।