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स्पीकर ने गहलोत के बयान को संवैधानिक परंपराओं के खिलाफ बताया

स्पीकर ने गहलोत के बयान को संवैधानिक परंपराओं के खिलाफ बताया

मनीषा शर्मा। राजस्थान विधानसभा स्पीकर वासुदेव देवनानी ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि गहलोत का बयान निरर्थक और संवैधानिक परंपराओं के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि अच्छा होता कि गहलोत अपने दल के विधायकों को सदन की गरिमा बनाए रखने की नसीहत देते बजाय इसके कि वे स्पीकर के कार्यों पर सवाल उठाते।

दरअसल, गहलोत ने गुरुवार को विधानसभा अध्यक्ष की कार्यशैली और कांग्रेस विधायकों के निलंबन को लेकर तल्ख टिप्पणी की थी। इसके जवाब में देवनानी ने लिखित बयान जारी कर अपनी सफाई दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि विपक्षी विधायकों के निलंबन का फैसला उचित था, क्योंकि उन्होंने सदन की मर्यादाओं का पालन नहीं किया।

‘अमर्यादित व्यवहार के कारण हुआ निलंबन’

स्पीकर देवनानी ने कहा कि सदन में धरने के दौरान कांग्रेस विधायकों को कई बार समझाने की कोशिश की गई थी।

  • नेता प्रतिपक्ष को चैंबर में बुलाकर बातचीत की गई।
  • लेकिन विपक्षी विधायकों ने अमर्यादित व्यवहार जारी रखा और हठधर्मिता दिखाई।
  • इसी कारण मजबूरी में निलंबन का फैसला लेना पड़ा।

स्पीकर ने साफ किया कि उनका निर्णय किसी एक पक्ष के खिलाफ नहीं था, बल्कि सदन की गरिमा बनाए रखने के लिए लिया गया था।

‘विपक्ष को सत्तापक्ष से ज्यादा मिला बोलने का अवसर’

स्पीकर देवनानी ने कहा कि गहलोत द्वारा विधानसभा अध्यक्ष की कार्यशैली पर सवाल उठाना लोकतांत्रिक परंपराओं के खिलाफ है। उन्होंने यह भी बताया कि इस बार बजट सत्र के दौरान विपक्ष को सत्तापक्ष से भी अधिक बोलने का मौका दिया गया।

  • बजट सत्र के 8 दिनों में 17 अनुदान मांगों पर बहस हुई।
  • बीजेपी विधायकों को 161 बार बोलने का अवसर मिला।
  • कांग्रेस विधायकों को 162 बार बोलने का मौका दिया गया।

स्पीकर ने यह भी कहा कि पहली बार विपक्षी विधायकों को इतनी बार बोलने का अवसर मिला है, फिर भी वे संतुष्ट नहीं हैं।

‘नेता प्रतिपक्ष को हर मौके पर शामिल किया’

देवनानी ने गहलोत के आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि विधानसभा में उठाए गए कई मुद्दों पर नेता प्रतिपक्ष को हमेशा साथ रखा गया।

  • कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के शुभारंभ के समय विपक्षी नेताओं को आमंत्रित किया गया था।
  • क्लब में सुविधाओं के निरीक्षण और तैयारियों के हर मौके पर नेता प्रतिपक्ष को शामिल किया गया।
  • फिर भी इस पर सवाल उठाना निराधार और बेबुनियाद है।

उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष का पद गरिमामय होता है और वह दलगत राजनीति से ऊपर होता है।

‘विधानसभा लोकतंत्र का पवित्र स्थल, इसकी गरिमा बनाए रखना दोनों पक्षों की जिम्मेदारी’

देवनानी ने स्पष्ट किया कि विधानसभा केवल सत्ता पक्ष की नहीं, बल्कि पूरे लोकतंत्र का पवित्र स्थल है।

  • सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों को इसकी गरिमा बनाए रखने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए।

  • विधानसभा अध्यक्ष किसी एक दल के पक्ष में कार्य नहीं कर सकते, बल्कि निष्पक्ष होकर सदन की कार्यवाही को सुचारु रूप से चलाने की जिम्मेदारी निभाते हैं।

  • विपक्ष को सदन में हंगामा करने की बजाय स्वस्थ बहस और मर्यादित व्यवहार करना चाहिए।

गहलोत के बयान के बाद राजनीतिक माहौल गर्माया

अशोक गहलोत के बयान के बाद राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा शुरू हो गई थी। कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र की हत्या बताया था, जबकि बीजेपी ने इसे विपक्ष की राजनीतिक नौटंकी करार दिया।

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