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राजस्थान में सहयोगी दल भाजपा और आरएलडी के बीच बढ़ी दरार

राजस्थान में सहयोगी दल भाजपा और आरएलडी के बीच बढ़ी दरार

शोभना शर्मा।  राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के बीच सियासी खींचतान तेज हो गई है। दोनों सहयोगी दल विधानसभा में आमने-सामने आ गए, जब आरएलडी विधायक और पूर्व मंत्री डॉ. सुभाष गर्ग ने भरतपुर में अतिक्रमण को लेकर सवाल उठाया। इस पर बीजेपी सरकार ने कड़ी आपत्ति जताते हुए उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पेश कर दिया।

भरतपुर अतिक्रमण विवाद से शुरू हुआ टकराव

सोमवार को राजस्थान विधानसभा में आरएलडी विधायक डॉ. सुभाष गर्ग ने भरतपुर में अतिक्रमण से जुड़ा सवाल उठाया। उन्होंने सरकार से यह जानना चाहा कि भरतपुर में धार्मिक स्थलों और सार्वजनिक भूमि पर अवैध कब्जों को लेकर क्या कार्रवाई की जा रही है। सरकार की ओर से इस सवाल पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। बीजेपी के कुछ विधायकों ने आरोप लगाया कि गर्ग सरकार की नीतियों पर ही सवाल उठा रहे हैं, जबकि उनकी पार्टी भाजपा की सहयोगी है।

बीजेपी का विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव

इस मामले को लेकर विधानसभा में माहौल गरमा गया। सत्ता पक्ष ने आरएलडी विधायक पर नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव पेश कर दिया। भाजपा नेताओं का कहना था कि सरकार के खिलाफ सार्वजनिक रूप से सवाल उठाना गठबंधन धर्म के खिलाफ है। आरएलडी के लिए यह स्थिति असहज करने वाली थी, क्योंकि गठबंधन में होने के बावजूद उसके विधायक को सरकार के निशाने पर लिया गया। डॉ. सुभाष गर्ग ने इस कदम पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि वे जनता की आवाज उठा रहे थे और इसमें कुछ भी अनुचित नहीं था।

आरएलडी-बीजेपी गठबंधन में फूट के संकेत?

यह पहली बार नहीं है जब आरएलडी और बीजेपी के बीच टकराव देखने को मिला हो। भरतपुर क्षेत्र में आरएलडी का अच्छा खासा प्रभाव है, और पार्टी के नेता कई बार स्थानीय मुद्दों पर अपनी राय खुलकर रखते आए हैं। लेकिन इस बार मामला गंभीर हो गया, क्योंकि खुद सरकार ने आरएलडी विधायक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटनाक्रम आरएलडी और बीजेपी के बीच संबंधों में खटास का संकेत दे सकता है। अगर यह मतभेद बढ़ता है, तो आरएलडी आने वाले दिनों में कोई बड़ा फैसला भी ले सकती है।

क्या गठबंधन पर खतरा मंडरा रहा है?

राजस्थान की राजनीति में गठबंधन हमेशा स्थिर नहीं रहे हैं। आरएलडी और बीजेपी का गठबंधन भी पूरी तरह से सहज नहीं रहा है। अगर मतभेद बढ़ते हैं और आरएलडी खुद को असहज महसूस करती है, तो वह आने वाले चुनावों में अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकती है।

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