शोभना शर्मा। राजस्थान हाई कोर्ट ने हाल ही में लिव-इन-रिलेशनशिप को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि भारत में लिव-इन-रिलेशनशिप को अभी भी सामाजिक मान्यता नहीं मिली है, लेकिन यह कानूनन अवैध भी नहीं है। हालांकि, इस मुद्दे पर कोई ठोस कानून न होने के कारण अलग-अलग न्यायालयों द्वारा विभिन्न दृष्टिकोण अपनाए जाते हैं, जिससे आम जनता में भ्रम की स्थिति बनी रहती है।
इस मामले पर जस्टिस अनूप ढंड की एकल पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को लिव-इन-रिलेशनशिप से संबंधित कानून बनाना चाहिए, जिससे इस तरह के मामलों में स्पष्टता आ सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक इस पर कानून नहीं बनता, तब तक प्रत्येक जिले में एक प्राधिकरण स्थापित किया जाना चाहिए, जो ऐसे रिश्तों से संबंधित शिकायतों का निवारण करेगा।
इसके अलावा, कोर्ट ने निर्देश दिया कि एक वेब पोर्टल भी बनाया जाए, जहां लिव-इन-रिलेशनशिप से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान किया जा सके। इस फैसले के पीछे मुख्य उद्देश्य उन लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है जो लिव-इन-रिलेशनशिप में रहते हैं और उन्हें किसी भी प्रकार की सामाजिक या कानूनी समस्या का सामना करना पड़ता है।
क्या लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले विवाहित व्यक्तियों को संरक्षण मिलेगा?
हाई कोर्ट के समक्ष एक और महत्वपूर्ण प्रश्न यह था कि क्या कोई विवाहित व्यक्ति, बिना अपने विवाह को समाप्त किए, किसी अन्य व्यक्ति के साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रह सकता है और क्या ऐसे मामलों में न्यायालय से संरक्षण की मांग की जा सकती है?
इस मुद्दे पर कोर्ट ने पाया कि राजस्थान हाई कोर्ट की अलग-अलग सिंगल बेंच के फैसले एक-दूसरे से भिन्न रहे हैं। कुछ मामलों में कोर्ट ने ऐसे जोड़ों को संरक्षण दिया है, जबकि कुछ मामलों में सुरक्षा देने से इनकार कर दिया गया।
इस कारण कोर्ट ने इस संवेदनशील मुद्दे को लार्जर बैंच को रेफर कर दिया है, ताकि यह तय किया जा सके कि क्या विवाहित व्यक्ति, बिना तलाक लिए, किसी अन्य व्यक्ति के साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रह सकते हैं और क्या वे न्यायालय से सुरक्षा आदेश प्राप्त करने के हकदार हैं।
लिव-इन-रिलेशनशिप पर कानून बनाने की जरूरत क्यों?
कोर्ट ने इस विषय पर जोर देते हुए कहा कि लिव-इन-रिलेशनशिप से जुड़े मामलों में बढ़ोतरी हो रही है, और कानून का अभाव होने के कारण कई बार न्यायालयों के लिए भी स्पष्ट दिशा-निर्देश तय करना कठिन हो जाता है।
इसके अलावा, ऐसे रिश्तों में रहने वाले व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए भी कानून बनाना आवश्यक है। कोर्ट ने सुझाव दिया कि:
- लिव-इन-रिलेशनशिप के अधिकार और दायित्वों को स्पष्ट करने के लिए एक अलग कानून बनाया जाए।
- ऐसे रिश्तों में उत्पीड़न या शोषण की स्थिति में महिलाओं को कानूनी सहायता मिले।
- लिव-इन-रिलेशनशिप से जन्मे बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और पालन-पोषण की जिम्मेदारी तय की जाए।
कोर्ट ने मुख्य सचिव, प्रमुख शासन सचिव विधि और केंद्रीय सचिव को इस आदेश की कॉपी भेजने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा, इस आदेश की अनुपालन रिपोर्ट 1 मार्च तक कोर्ट में प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है।
लिव-इन-रिलेशनशिप से जुड़े जटिल कानूनी पहलू
- विवाहित व्यक्तियों का लिव-इन में रहना:
यदि कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा है और बिना तलाक लिए किसी अन्य व्यक्ति के साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रहता है, तो क्या यह कानूनी रूप से वैध होगा? इस पर अभी कोई स्पष्ट कानून नहीं है।- दूसरे विवाह जैसा मामला:
कुछ मामलों में, लिव-इन-रिलेशनशिप को विवाह जैसी स्थिति मानकर संबंधित कानूनों का उपयोग किया जाता है, लेकिन यह न्यायालयों की व्याख्या पर निर्भर करता है।- महिला और बच्चों के अधिकार:
घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को कुछ सुरक्षा प्रदान की जाती है, लेकिन स्पष्ट कानून न होने के कारण कई बार उन्हें न्याय पाने में कठिनाई होती है।- संपत्ति अधिकार और उत्तराधिकार:
यदि कोई व्यक्ति लंबे समय तक लिव-इन-रिलेशनशिप में रहा है और उसके बाद उसकी मृत्यु हो जाती है, तो संपत्ति के उत्तराधिकार के मामले में कई कानूनी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।