शोभना शर्मा। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय ने पीजी फर्स्ट ईयर सेमेस्टर प्रथम के रेगुलर स्टूडेंट्स के डेटा अपलोड करने की अंतिम तिथि बढ़ा दी है। अब महाविद्यालय 12 जनवरी 2025 तक अपने स्टूडेंट्स का डेटा विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड कर सकते हैं। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने यह कदम छात्रों और महाविद्यालयों की सुविधा के लिए उठाया है।
परीक्षा नियंत्रक सुनील टेलर ने बताया कि संबंधित महाविद्यालयों को सीएसवी फॉर्मेट में डेटा अपलोड करना होगा। अपलोड किए गए डेटा में किसी भी प्रकार का संशोधन करने का विकल्प उपलब्ध नहीं होगा, इसलिए इसे बहुत सावधानी से अपलोड करना अनिवार्य है।
डेटा अपलोड करने की प्रक्रिया
महाविद्यालयों को अपनी लॉगिन आईडी के माध्यम से विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर स्टूडेंट्स का डेटा अपलोड करना होगा। इसके लिए वेबसाइट पर एक सैंपल फाइल उपलब्ध कराई गई है, जिसे डाउनलोड करके उसमें आवश्यक विवरण भरना होगा।
सैंपल फाइल में भरने वाले विवरण:
छात्र का नाम (एबीसी आईडी के अनुसार)।
पिता का नाम।
माता का नाम।
सीनियर सेकेंडरी अंकतालिका के अनुसार अन्य जानकारी।
यूनिक मोबाइल नंबर।
डेटा अपलोड करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
डेटा अपलोड करते समय निम्नलिखित सावधानियां बरतना अनिवार्य है:
डेटा की सटीकता सुनिश्चित करें: सैंपल फाइल में सभी विवरण सही-सही भरें, क्योंकि एक बार डेटा लॉक हो जाने के बाद इसमें कोई संशोधन नहीं किया जा सकेगा।
यूनिक मोबाइल नंबर भरना अनिवार्य है।
सीट सीमा का पालन करें: महाविद्यालय को अपनी निर्धारित सीट सीमा के अनुसार ही स्टूडेंट्स का डेटा अपलोड करना होगा।
गलत डेटा की जिम्मेदारी: किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए संबंधित महाविद्यालय जिम्मेदार होगा। यदि गलत डेटा अपलोड किया गया तो स्टूडेंट्स का परीक्षा फॉर्म भरने में समस्या हो सकती है।
लॉक करने से पहले जांच: डेटा अपलोड और चेक करने के बाद ही फाइल को लॉक करें।
डेटा लॉक करने के बाद संशोधन संभव नहीं
परीक्षा नियंत्रक ने स्पष्ट किया है कि एक बार डेटा लॉक हो जाने के बाद सीएसवी फाइल में किसी भी प्रकार का संशोधन संभव नहीं होगा। यदि किसी छात्र का नाम अपलोड करने में छूट जाता है, तो उसकी जिम्मेदारी महाविद्यालय की होगी।
डेटा अपलोड की बढ़ी हुई तिथि से छात्रों को राहत
परीक्षा 2025 के लिए डेटा अपलोड की अंतिम तिथि को 12 जनवरी तक बढ़ाने का निर्णय छात्रों और महाविद्यालयों के लिए राहत लेकर आया है। यह फैसला डेटा अपलोड करने में हो रही तकनीकी और प्रबंधकीय समस्याओं को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।