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राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता: लंबे संघर्ष के बाद उम्मीदें जागी

राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता: लंबे संघर्ष के बाद उम्मीदें जागी

मनीषा शर्मा।  राजस्थानी भाषा को भारत के संविधान में संवैधानिक मान्यता दिलाने की मांग लंबे समय से की जा रही है। इस दिशा में राज्य में कई बार आंदोलन हुए और विभिन्न मंचों से जोरदार आवाज उठाई गई। प्रदेश के युवा नेता और शिव विधायक रवींद्र सिंह भाटी इस मुद्दे को लेकर सक्रिय रहे हैं। उन्होंने न केवल सार्वजनिक मंचों पर बल्कि विधायिका में भी राजस्थानी भाषा का समर्थन किया। भाटी ने अपनी विधानसभा शपथ भी राजस्थानी भाषा में ली, जिससे इस मुद्दे को और मजबूती मिली।

राजस्थानी भाषा के संवैधानिक दर्जे की लड़ाई में कोचिंग संस्थान ‘स्प्रिंग बोर्ड’ के शिक्षक राजवीर सिंह भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। उनकी आवाज ने इस अभियान को और धार दी। यह प्रयास अब सफल होता दिख रहा है क्योंकि राजस्थान सरकार ने इस मुद्दे को केंद्र सरकार के समक्ष प्रभावी ढंग से रखा है।

राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए राजस्थान सरकार की पहल
राजस्थान के मुख्य सचिव सुधांश पंत ने भारत सरकार के गृह सचिव गोविंद मोहिल को पत्र लिखकर राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की सिफारिश की है। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर की पहल पर भेजे गए इस पत्र में उल्लेख किया गया है कि राजस्थानी भाषा न केवल सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है, बल्कि यह राज्य के लाखों लोगों की मातृभाषा भी है।

पत्र में सीताकांत महापात्र की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिश का उल्लेख किया गया है। इस समिति ने संविधान की आठवीं अनुसूची में नई भाषाओं को जोड़ने के लिए वस्तुनिष्ठ मानदंड तैयार किए हैं। हालांकि राजस्थानी भाषा को अभी तक इस सूची में शामिल नहीं किया गया है, जिसे अब पूरा करने के लिए केंद्र सरकार से उचित कदम उठाने की अपील की गई है।

राजस्थानी भाषा: सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का प्रतीक
राजस्थानी भाषा सिर्फ एक संचार माध्यम नहीं है, बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान का हिस्सा है। यह भाषा अपनी अलग-अलग बोलियों, साहित्य, और संगीत के माध्यम से राज्य के जनजीवन में गहराई तक रची-बसी है। इसे संवैधानिक दर्जा मिलने से न केवल राज्य के लोगों को गर्व महसूस होगा, बल्कि यह भाषा आने वाली पीढ़ियों तक संरक्षित रहेगी।

राजस्थान विधानसभा का ऐतिहासिक संकल्प
यह बात भी गौरतलब है कि राजस्थान विधानसभा ने 3 सितंबर 2003 को राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने का संकल्प पारित किया था। इसके तहत यह मांग की गई थी कि इस भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ा जाए। अब इस संकल्प को 20 साल बाद केंद्र सरकार के स्तर पर मंजूरी मिलने की उम्मीद है।

संवैधानिक दर्जा मिलने के फायदे
राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने से इसे आधिकारिक रूप से मान्यता मिलेगी। इससे यह भाषा स्कूलों में पढ़ाई जा सकेगी, प्रतियोगी परीक्षाओं में एक वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल होगी और सरकारी दस्तावेजों में इसका उपयोग बढ़ेगा। यह न केवल भाषा के विकास में सहायक होगा, बल्कि रोजगार और शिक्षा के क्षेत्र में भी इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेगा।

युवाओं की सक्रिय भूमिका
इस आंदोलन में युवाओं की भागीदारी ने इसे नई ऊर्जा दी है। विधायक रवींद्र सिंह भाटी जैसे युवा नेताओं ने यह साबित किया है कि भाषा केवल एक माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति और पहचान का अटूट हिस्सा है। उनकी पहल ने अन्य युवाओं को भी इस मुद्दे पर जागरूक किया। शिक्षक राजवीर सिंह और उनके जैसे कई अन्य व्यक्तियों ने इस अभियान को व्यापक स्तर पर पहुंचाया है।

आठवीं अनुसूची में शामिल होने की प्रक्रिया
संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्तमान में 22 भाषाएं शामिल हैं। किसी भाषा को इसमें शामिल करने के लिए केंद्र सरकार का निर्णय आवश्यक है। इसके तहत भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलती है और यह भारत की आधिकारिक भाषाओं में से एक बन जाती है। राजस्थानी भाषा को इस सूची में शामिल करना राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को एक नई पहचान देना होगा।

संस्कृति और भाषा का संरक्षण
राजस्थान सरकार का यह कदम राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने और उसे बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण है। राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलने से राज्य के लोग अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति गर्व महसूस करेंगे। यह निर्णय आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल बनेगा और उन्हें अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देगा।

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