मनीषा शर्मा। भारतीय चिकित्सा पद्धतियों जैसे आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी, और सिद्धा को आधुनिक चिकित्सा के समकक्ष लाने की कोशिशें लंबे समय से चल रही हैं। लेकिन अंडरग्रैजुएट पाठ्यक्रम, खासकर बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी (बीएएमएस) में छात्रों की रुचि लगातार घट रही है। आयुष मंत्रालय ने हाल ही में बीएएमएस पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए न्यूनतम पात्रता परसेंटाइल घटाने का निर्णय लिया। यह कदम विद्यार्थियों की घटती संख्या और सीटें खाली रहने की समस्या को हल करने के लिए उठाया गया है।
नया पात्रता मानदंड: न्यूनतम परसेंटाइल में कटौती
- पहले का मानदंड:
- जनरल और ईडब्ल्यूएस कैटेगरी: न्यूनतम 50% (162 अंक)
- ओबीसी-एनसीएल, एससी, एसटी: न्यूनतम 40% (127 अंक)
- अब का मानदंड:
- जनरल और ईडब्ल्यूएस कैटेगरी: न्यूनतम 35%
- ओबीसी-एनसीएल, एससी, एसटी: न्यूनतम 25%
पात्रता में बदलाव का प्रभाव
अब 720 अंकों में से केवल 127 से कम अंक, यानी 17% से भी कम अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी भी बीएएमएस और अन्य आयुष पाठ्यक्रमों में प्रवेश ले सकेंगे।
गिरावट के कारण: क्यों घट रही है रुचि?
1. एमबीबीएस का आकर्षण
- एमबीबीएस पाठ्यक्रम में पद, प्रतिष्ठा, और पैसे तीनों की बहुतायत है।
- विद्यार्थी बार-बार प्रयास करके भी मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट-यूजी में एमबीबीएस में सीट हासिल करना चाहते हैं।
2. आयुर्वेदिक शिक्षा की ब्रांडिंग कमजोर
- बीएएमएस जैसे पाठ्यक्रमों की पहचान कमजोर है।
- अभिभावकों और विद्यार्थियों में यह धारणा बनी हुई है कि इन पाठ्यक्रमों में भविष्य सुरक्षित नहीं है।
3. चिकित्सा पद्धति में सीमित स्वीकृति
- एलोपैथिक चिकित्सा को प्राथमिकता मिलने से आयुर्वेद जैसे पाठ्यक्रम कम प्रचलित हैं।
- बीएएमएस डॉक्टरों के लिए करियर के अवसर सीमित और अपेक्षाकृत कम लाभदायक माने जाते हैं।
4. आयुष संस्थानों की गुणवत्ता पर सवाल
- कई आयुष संस्थानों की शिक्षण गुणवत्ता और बुनियादी ढांचा आधुनिक मेडिकल कॉलेजों की तुलना में कमजोर है।
आयुष मंत्रालय और NCISM का निर्णय: प्रयास और चुनौतियां
पात्रता मानदंड में छूट
नेशनल कमीशन फॉर इंडियन सिस्टम ऑफ़ मेडिसिन (NCISM) ने न्यूनतम पात्रता परसेंटाइल में कटौती की है ताकि अधिक छात्र बीएएमएस पाठ्यक्रम में दाखिला ले सकें।
काउंसलिंग प्रक्रिया फिर से शुरू होगी
आयुष एडमिशन सेंट्रल काउंसलिंग कमेटी (AACC) ने यह घोषणा की है कि संशोधित पात्रता मानदंड के अनुसार नई काउंसलिंग प्रक्रिया का शेड्यूल जल्द जारी किया जाएगा।
विवाद: गुणवत्ता पर प्रभाव
- कई विशेषज्ञ इसे आयुर्वेदिक शिक्षा की गुणवत्ता पर समझौता मान रहे हैं।
- छात्रों का चयन न्यूनतम अंकों पर करने से पाठ्यक्रम की साख और गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है।
आयुर्वेदिक शिक्षा में सुधार के उपाय: कैसे बढ़ेगी रुचि?
1. पाठ्यक्रम का आधुनिकीकरण
- ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (IIT) जैसे संस्थानों की मदद से आयुर्वेद पाठ्यक्रम को आधुनिक बनाया जाए।
- आयुर्वेदिक चिकित्सा में नई तकनीक और अनुसंधान को जोड़ा जाए।
2. बेहतर ब्रांडिंग और प्रचार
- आयुर्वेद पाठ्यक्रमों के फायदों को सही ढंग से प्रचारित किया जाए।
- यह संदेश दिया जाए कि आयुर्वेद चिकित्सा भी एक सम्मानजनक और लाभकारी करियर विकल्प है।
3. रोजगार और आय बढ़ाने की गारंटी
- आयुर्वेद डॉक्टरों को सरकारी और निजी क्षेत्र में बेहतर अवसर प्रदान किए जाएं।
- उन्हें आकर्षक वेतन और प्रोत्साहन दिया जाए।
4. शिक्षण संस्थानों का उन्नयन
- आयुष कॉलेजों में बुनियादी ढांचे और शिक्षकों की गुणवत्ता को सुधारने के लिए निवेश किया जाए।
- छात्रों को अनुसंधान और विकास के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
आयुर्वेद को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता
आयुर्वेद भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति है और इसे नई पीढ़ी तक ले जाने के लिए सरकार और शैक्षणिक संस्थानों को सामूहिक प्रयास करना होगा।
पात्रता मानदंड में कटौती एक अस्थायी उपाय हो सकता है, लेकिन दीर्घकालिक सफलता के लिए आयुर्वेद पाठ्यक्रमों की री-ब्रांडिंग, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, और रोजगार के बेहतर अवसर प्रदान करना अनिवार्य है।