शोभना शर्मा । राजस्थान के पुष्कर मेला 2024 का समापन आज कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर हुआ। यह विश्व प्रसिद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक मेला हर साल लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है। कार्तिक पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं ने पुष्कर सरोवर में स्नान किया और ब्रह्मा मंदिर में दर्शन किए।
कार्तिक पूर्णिमा का महास्नान
आज सुबह से ही श्रद्धालु पुष्कर सरोवर के विभिन्न घाटों जैसे गऊ घाट, जयपुर घाट, बद्री घाट, गणगौर घाट और वराह घाट पर महास्नान के लिए पहुंचे। सरोवर पर विशेष पूजा-अर्चना, दुग्धाभिषेक और भजन-कीर्तन के साथ धार्मिक अनुष्ठान किए गए। सरोवर के मुख्य घाटों पर पं. शशांक पाराशर और पं. चंद्रशेखर गौड़ जैसे धर्माचार्यों ने महाआरती का नेतृत्व किया।
शाम को महाआरती के आयोजन के साथ ही मेले का समापन हुआ। इसमें हजारों श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया और अपनी आस्था को अभिव्यक्त किया।
सांस्कृतिक कार्यक्रम और पुरस्कार वितरण
मेले के समापन पर कई ग्रामीण खेलकूद और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। इनमें मटका दौड़, रस्सा-कस्सी, झांकियां, और अन्य प्रतियोगिताएं शामिल थीं। देशी और विदेशी पर्यटकों ने इन आयोजनों में उत्साह के साथ भाग लिया। विजेताओं को प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सम्मानित किया गया।
अव्यवस्थाओं की भरमार
इस प्रतिष्ठित मेले की लोकप्रियता के बावजूद अव्यवस्थाएं श्रद्धालुओं के लिए परेशानी का कारण बनीं।
- गंदगी और सफाई का अभाव
श्रद्धालुओं को पवित्र स्नान गंदगी के बीच करना पड़ा। घाटों और रास्तों पर कचरा फैला हुआ था। - आवारा जानवरों की समस्या
मेले के दौरान आवारा पशुओं ने श्रद्धालुओं को परेशान किया। - वाहन और ठेले
भारी भीड़ के बावजूद टू-व्हीलर और ठेले वालों की वजह से लोगों को मंदिर और बाजारों तक पहुंचने में दिक्कतें हुईं। - लंबी कतारें
मुख्य मंदिरों और बाजारों में श्रद्धालुओं को लंबी कतारों में खड़े रहना पड़ा।
इन समस्याओं ने प्रशासनिक प्रबंधन पर सवाल खड़े किए।
आस्था और पर्यटन का संगम
पुष्कर मेला धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ पर्यटन के लिए भी जाना जाता है। हर साल लाखों श्रद्धालु और विदेशी पर्यटक यहां पहुंचते हैं। मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि ग्रामीण संस्कृति, हस्तशिल्प, और पशु व्यापार के लिए भी प्रसिद्ध है।
समापन पर प्रशासन की जिम्मेदारी
अंतिम दिन की भीड़ को संभालने के लिए प्रशासन ने कई उपाय किए। हालांकि, अव्यवस्थाओं पर नियंत्रण नहीं हो पाया। श्रद्धालुओं और पर्यटकों ने सफाई और भीड़ प्रबंधन में सुधार की मांग की।


