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भारत के 51वें चीफ जस्टिस बने जस्टिस संजीव खन्ना

भारत के 51वें चीफ जस्टिस बने जस्टिस संजीव खन्ना

शोभना शर्मा।  जस्टिस संजीव खन्ना  (Justice Sanjiv Khanna) ने भारत के 51वें चीफ जस्टिस (Chief Justice of India) के रूप में शपथ ग्रहण किया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा उन्हें शपथ दिलाई गई, और इसके साथ ही उन्होंने जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का स्थान लिया। जस्टिस खन्ना लगभग छह महीने के कार्यकाल के लिए इस पद पर रहेंगे और 13 मई 2025 को अपनी 65 वर्ष की आयु पूरी होने पर सेवानिवृत्त हो जाएंगे। उनका कार्यकाल कई महत्वपूर्ण मामलों से भरा रहेगा, जिसमें जातीय जनगणना की वैधता, मैरिटल रेप, नागरिकता संशोधन अधिनियम, और समलैंगिक विवाह से जुड़े मुद्दे शामिल हैं।

जस्टिस संजीव खन्ना: एक मजबूत निर्णय निर्माता
जस्टिस संजीव खन्ना न्यायपालिका में अपनी स्पष्ट और त्वरित निर्णय लेने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं। उनके महत्वपूर्ण निर्णयों की सूची में कुछ ऐसे मामले हैं जो समाज और देश की संरचना में बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं। जस्टिस खन्ना ने न केवल कानून की व्याख्या में संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है, बल्कि उन्होंने न्यायपालिका में धर्मनिरपेक्षता और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए कदम उठाए हैं।

आने वाले प्रमुख मामलों में चीफ जस्टिस की भूमिका

  1. जातीय जनगणना की वैधता:
    बिहार में हुई जातीय जनगणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर किया गया है। इस जनगणना के परिणाम कई सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव डाल सकते हैं, और इस पर जस्टिस खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच विचार करेगी।
  2. समलैंगिक विवाह पर पुनर्विचार:
    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के याचिका को खारिज किया था, लेकिन इसके विरोध में एक पुनर्विचार याचिका दायर की गई है। इस संवेदनशील मुद्दे पर जस्टिस खन्ना का निर्णय न केवल भारत में समानता के अधिकार की दिशा में महत्वपूर्ण होगा, बल्कि इससे LGBTQ+ समुदाय की सुरक्षा और मान्यता भी तय होगी।
  3. मैरिटल रेप:
    विवाह में बलात्कार की वैधानिकता पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर है। महिला अधिकारों और लैंगिक समानता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण मामला है। जस्टिस खन्ना का रुख इस पर जनता के ध्यान का केंद्र बना हुआ है।
  4. नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA):
    विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम की वैधता पर भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। इस पर कोर्ट का फैसला राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होगा, खासकर अल्पसंख्यक समुदायों के संदर्भ में।
  5. बीबीसी डॉक्यूमेंट्री विवाद:
    पीएम नरेंद्र मोदी से संबंधित विवादित बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को लेकर भी मामला कोर्ट में है। इस डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण पर रोक के आदेश और उसके संवैधानिक अधिकारों पर अदालत का निर्णय मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संदर्भ में निर्णायक होगा।
  6. चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अधिनियम, 2023:
    हाल ही में लागू हुए चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस अधिनियम पर कोर्ट का निर्णय चुनाव प्रक्रिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लिहाज से अहम है।

जस्टिस खन्ना की न्यायिक दृष्टि: धर्मनिरपेक्षता पर स्पष्ट रुख
धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर जस्टिस खन्ना का रुख हमेशा स्पष्ट रहा है। कुछ समय पहले ही उन्होंने एक मामले में स्पष्ट किया था कि संविधान में धर्मनिरपेक्षता और समानता को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। उनके अनुसार धर्मनिरपेक्षता हमेशा संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा रही है। यह दृष्टिकोण उन्हें ऐसे न्यायाधीश के रूप में प्रस्तुत करता है जो संविधान के मूल सिद्धांतों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

ओपन जेल का समर्थन:
जस्टिस खन्ना ने भारतीय जेलों की सुधार योजनाओं के तहत ओपन जेल का समर्थन किया है। उनका मानना है कि खुली जेलों की अवधारणा न केवल अपराध दर में कमी लाने में सहायक है, बल्कि इससे अपराधियों के पुनर्वास में भी मदद मिलती है। उन्होंने यह भी बताया है कि भारतीय जेलों में कैदियों की भीड़भाड़ से सुधार प्रक्रियाओं में अवरोध उत्पन्न होता है।

जस्टिस खन्ना का लीगल करियर और शिक्षा

पारिवारिक पृष्ठभूमि और शिक्षा:
जस्टिस संजीव खन्ना का जन्म 14 मई 1960 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता जस्टिस देश राज खन्ना दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायाधीश के पद पर कार्यरत रहे हैं, और उनकी माता सरोज खन्ना दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज में हिंदी की लेक्चरर थीं। खन्ना ने अपनी स्कूली शिक्षा नई दिल्ली के मॉडर्न स्कूल से पूरी की और दिल्ली विश्वविद्यालय के फैकल्टी ऑफ लॉ के कैंपस लॉ सेंटर से कानून की पढ़ाई की।

प्रमुख फैसले और न्यायिक योगदान:
जस्टिस संजीव खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट में 2019 में न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी और तब से लेकर उन्होंने 456 बेंच में भाग लिया और 117 फैसले लिखे हैं। उनके प्रमुख फैसले समाज और संविधान के विभिन्न पहलुओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं।

  1. ईवीएम विवाद:
    जस्टिस खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के खिलाफ आरोपों को खारिज किया और ईवीएम प्रणाली को सुरक्षित करार दिया। उनके अनुसार, ईवीएम की प्रणाली फर्जी मतदान और मतदान केंद्रों पर कब्जा रोकने में सहायक है।
  2. चुनावी बॉण्ड योजना:
    चुनावी बॉण्ड योजना को लेकर जस्टिस खन्ना की बेंच ने इसे असंवैधानिक घोषित किया। यह फैसला राजनीतिक दलों की पारदर्शिता और चुनावी फंडिंग पर स्पष्ट संदेश देता है।
  3. अनुच्छेद 370:
    जस्टिस खन्ना 5 जजों की बेंच का हिस्सा थे जिसने जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को रद्द करने के निर्णय को बरकरार रखा था।
  4. OROP में देरी पर जुर्माना:
    वन रैंक वन पेंशन (OROP) के भुगतान में देरी के लिए जस्टिस खन्ना ने केंद्र सरकार पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया और आर्मी वेलफेयर बोर्ड में राशि जमा कराने का आदेश दिया।

लंबित मामलों में कमी पर फोकस:
जस्टिस खन्ना का मानना है कि न्यायपालिका में लंबित मामलों की संख्या में कमी लाई जानी चाहिए। इसके लिए वह त्वरित न्याय दिलाने के लिए विभिन्न उपायों की वकालत करते हैं, जैसे कि कोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम में सुधार और जजों की नियुक्ति के मामलों में तेजी लाना।

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