शोभना शर्मा। सर्दियों का मौसम यानी शरद ऋतु केवल प्रकृति में ही नहीं बल्कि हमारे शरीर में भी बड़े बदलाव लेकर आता है। इस दौरान शरीर की आंतरिक गर्मी बढ़ने लगती है, जिसे आयुर्वेद में पित्त दोष का बढ़ना कहा गया है। आयुर्वेद के अनुसार यह समय शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए अहम होता है, लेकिन अगर खानपान गलत हो जाए तो पेट में जलन, त्वचा पर दाने, चिड़चिड़ापन और सिरदर्द जैसी परेशानियां आम हो जाती हैं।
आयुर्वेदिक ग्रंथों में इस ऋतु के लिए “ऋतुचर्या” यानी मौसम के अनुसार आहार-विहार का विस्तृत विवरण मिलता है। आइए जानते हैं, सर्दियों में आयुर्वेद के अनुसार क्या खाना चाहिए और किन चीजों से बचना जरूरी है।
1. पित्त को शांत करने वाले खाद्य पदार्थ खाएं
आयुर्वेद में कहा गया है कि सर्दियों में पित्त को नियंत्रित करना स्वास्थ्य का मूल मंत्र है। इसके लिए ठंडी तासीर वाले, हल्के और प्राकृतिक खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
अनाज:
चावल, जौ और गेहूं जैसे अनाज इस मौसम में सबसे उत्तम माने जाते हैं। ये पचने में आसान होते हैं और शरीर में संतुलन बनाए रखते हैं। आप इनसे बनी दलिया, खिचड़ी या हल्की रोटी को नियमित रूप से खा सकते हैं।
फल:
नारियल, अमरूद, बेल और जामुन जैसे फल शरीर की गर्मी को कम करते हैं। इन फलों में मौजूद विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट शरीर को संक्रमण से भी बचाते हैं।
सब्ज़ियां:
लौकी, तुरई, परवल, कद्दू, टिंडा और पालक-मेथी जैसी हरी सब्जियां इस मौसम के लिए आदर्श हैं। ये पाचन को मजबूत करती हैं और पित्त को शांत रखती हैं।
पेय:
दिन की शुरुआत नारियल पानी, आंवला रस या नींबू पानी से करें। यह शरीर को डिटॉक्स करने के साथ-साथ इम्युनिटी भी बढ़ाते हैं।
डेयरी उत्पाद:
गाय का दूध और छाछ (मट्ठा) पित्त को संतुलित करने में मददगार होते हैं। दूध में हल्दी मिलाकर पीना रात के समय लाभकारी होता है।
2. इन चीजों से सर्दियों में रखें दूरी
आयुर्वेद बताता है कि कुछ खाद्य पदार्थ इस मौसम में “पित्त को भड़काने वाले” साबित होते हैं। इनसे बचना ही समझदारी है।
तीखे मसाले:
अत्यधिक मिर्च, राई और गरम मसालों का सेवन पित्त को असंतुलित करता है। इससे पेट में जलन और एसिडिटी बढ़ती है।
तले-भुने खाद्य पदार्थ:
तेल में तले हुए भोजन जैसे पकोड़े, कचौरी या समोसे पचने में कठिन होते हैं। सर्दियों में पाचन अग्नि कमजोर रहती है, इसलिए इनसे बचना चाहिए।
कैफीन और अल्कोहल:
चाय, कॉफी और शराब जैसे पेय पदार्थ शरीर की गर्मी बढ़ाते हैं और डिहाइड्रेशन का कारण बनते हैं। इनका सेवन कम करें।
दही और खट्टे खाद्य पदार्थ:
आयुर्वेद के अनुसार, इस मौसम में दही खासकर रात में नहीं खाना चाहिए। इससे सर्दी, खांसी और पित्त असंतुलन की संभावना बढ़ जाती है।
3. आयुर्वेदिक लाइफस्टाइल अपनाएं
सिर्फ खानपान ही नहीं, दिनचर्या और कुछ छोटे घरेलू उपाय भी इस मौसम में आपको स्वस्थ रखने में मदद करते हैं।
सुबह का काढ़ा:
सौंफ और धनिया के बीजों का काढ़ा सुबह खाली पेट पीने से पेट को ठंडक मिलती है और पाचन क्रिया सुधरती है।
ताम्र जल का सेवन:
रातभर तांबे के बर्तन में रखा पानी सुबह पीने से शरीर की टॉक्सिन्स निकल जाती हैं और लिवर साफ रहता है।
नस्य कर्म:
नाक में प्रतिदिन गाय का घी या अणु तेल की एक-एक बूंद डालने से सिरदर्द, आंखों की जलन और मानसिक तनाव में राहत मिलती है।
चंद्रप्रभा चिकित्सा:
आयुर्वेद के अनुसार रात में चांदनी में टहलना पित्त को शांत करने का एक सरल और प्राकृतिक तरीका है। इससे मन और शरीर दोनों को शांति मिलती है।
व्यायाम:
सर्दियों में बहुत भारी व्यायाम से बचें। योग, प्राणायाम और हल्की स्ट्रेचिंग को प्राथमिकता दें। इससे शरीर में संतुलन बना रहता है।
4. नींद और मानसिक संतुलन भी जरूरी
आयुर्वेद में कहा गया है कि अगर आप शरीर और मन को संतुलित रखना चाहते हैं, तो पर्याप्त नींद लेना जरूरी है। सर्दियों में जल्दी सोना और सूर्योदय के बाद उठना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। तनाव और क्रोध से भी पित्त बढ़ता है, इसलिए ध्यान और मेडिटेशन का अभ्यास करें।
5. त्योहारों में खानपान पर रखें ध्यान
शरद ऋतु में दीपावली, तुलसी विवाह, और कार्तिक स्नान जैसे त्योहार आते हैं। इस दौरान मिठाइयों और तले हुए खाद्य पदार्थों का सेवन सामान्य बात है, लेकिन आयुर्वेद के अनुसार “संयम ही सबसे बड़ा औषधि है।”
त्योहारों के दौरान भी संतुलित मात्रा में भोजन करें और दिनभर खूब पानी पीते रहें।
आयुर्वेद के अनुसार हर ऋतु में शरीर की जरूरतें बदलती हैं, और उसी के अनुसार आहार-विहार भी बदलना चाहिए। शरद ऋतु में पित्त दोष का नियंत्रण ही स्वास्थ्य का आधार है। अगर आप ठंडी तासीर वाले, हल्के और सात्विक भोजन को अपनाते हैं, तो सर्दियों के मौसम में किसी भी तरह की बीमारी से बचे रह सकते हैं।
“जो व्यक्ति ऋतु के अनुसार जीवन जीता है, वह रोगों से हमेशा दूर रहता है।”
डिस्क्लेमर:
इस लेख में दी गई जानकारी आयुर्वेदिक परंपरा और सामान्य स्वास्थ्य जागरूकता पर आधारित है। किसी भी उपचार या दवा का प्रयोग करने से पहले आयुर्वेद विशेषज्ञ या चिकित्सक से सलाह अवश्य लें।