मनीषा शर्मा। राजस्थान में पानी की कमी और लगातार गिरते भूजल स्तर को देखते हुए सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। बुधवार को विधानसभा में भूजल (संरक्षण एवं प्रबंधन) प्राधिकरण विधेयक 2025 पास कर दिया गया। इसके तहत अब राज्य में ट्यूबवेल या बोरवेल खुदाई से पहले अनुमति लेना अनिवार्य होगा। इतना ही नहीं, पानी निकालने पर उपभोक्ताओं को शुल्क भी देना होगा।
नए कानून का मकसद है कि अनियंत्रित भूजल दोहन को रोका जाए और आने वाली पीढ़ियों के लिए पानी का संतुलन बनाए रखा जा सके।
अनुमति और मीटरिंग होगी जरूरी
नए नियमों के अनुसार, औद्योगिक और वाणिज्यिक उपयोग के लिए लगाए जाने वाले ट्यूबवेल पर मीटर लगाना अनिवार्य होगा। जितना पानी निकलेगा, उसी अनुपात में टैरिफ तय होगा और उपभोक्ताओं को भुगतान करना होगा। इसका उद्देश्य पानी की बर्बादी को रोकना और उपयोगकर्ताओं को जिम्मेदारी का अहसास कराना है।
50 हजार से 1 लाख रुपये तक जुर्माना
विधानसभा में पारित इस विधेयक के तहत राज्य स्तर पर एक भूजल संरक्षण एवं प्रबंधन प्राधिकरण बनाया जाएगा। यह प्राधिकरण ट्यूबवेल ड्रिलिंग लाइसेंस, बोरिंग रिग पंजीकरण और भूजल उपयोग की पूरी प्रक्रिया की निगरानी करेगा।
बिना अनुमति ट्यूबवेल खोदने या भूजल निकालने पर पहली बार 50 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा। यदि कोई व्यक्ति दोबारा इस नियम का उल्लंघन करता है, तो उसे 6 महीने तक की जेल और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों सजा दी जा सकती है।
डार्क जोन पर सख्त निगरानी
नए कानून में विशेष रूप से ‘डार्क जोन’ घोषित इलाकों पर कड़ी निगरानी रखने का प्रावधान है। डार्क जोन वे क्षेत्र होते हैं जहां भूजल का स्तर खतरनाक रूप से नीचे चला गया है। ऐसे इलाकों में ट्यूबवेल खुदाई और पानी का दोहन बेहद सख्ती से नियंत्रित किया जाएगा।
भूजल प्राधिकरण न केवल अनुमति देगा बल्कि भूजल स्तर और डार्क जोन की स्थिति पर नियमित निगरानी भी करेगा। यह हर साल अपनी गतिविधियों की रिपोर्ट विधानसभा में पेश करेगा।
जिला स्तर पर समितियां
विधानसभा में पारित बिल के अनुसार, जिला स्तर पर भी भूजल संरक्षण और प्रबंधन समितियां बनाई जाएंगी। ये समितियां स्थानीय स्तर पर जल संरक्षण की योजनाएं तैयार करेंगी और उनके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी संभालेंगी।
प्राधिकरण में जल संरक्षण और इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ शामिल होंगे। इनमें कम से कम 20 साल का अनुभव रखने वाले विशेषज्ञों को प्राथमिकता दी जाएगी। साथ ही, प्राधिकरण में दो विधायक भी सदस्य होंगे, जिससे जनता की सीधी भागीदारी बनी रहे।
राजस्थान में गंभीर होती जल समस्या
राजस्थान देश का वह राज्य है जहां भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। बारां, भीलवाड़ा, नागौर, झुंझुनूं और बाड़मेर जैसे जिलों में लोग हर गर्मी में मीलों दूर से पानी लाने को मजबूर हो जाते हैं। किसानों को हर सीजन में कुएं और ट्यूबवेल सूखने की समस्या झेलनी पड़ती है।
राज्य के 302 ब्लॉकों में से 219 ब्लॉक ओवर एक्सप्लॉइटेड घोषित हो चुके हैं। इसका मतलब है कि इन इलाकों से जितना पानी निकाला जा रहा है, उतना जमीन में वापस नहीं जा रहा। राजस्थान का लगभग 83 प्रतिशत भूजल कृषि में उपयोग हो रहा है, जबकि उद्योगों में केवल 2 से 3 प्रतिशत और बाकी घरेलू उपयोग में लगता है।
कई इलाकों में भूजल का स्तर हर साल औसतन 10 मीटर तक नीचे खिसक रहा है। 2022 के पोस्ट-मानसून सर्वे में भूजल स्तर 0.15 मीटर से लेकर 190.40 मीटर तक दर्ज किया गया।
सरकार का दावा- जल संरक्षण की दिशा में ऐतिहासिक कदम
संसदीय कार्यमंत्री जोगाराम पटेल ने विधानसभा में कहा कि यह कानून जल संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। उनके अनुसार, इससे न केवल अनियंत्रित भूजल दोहन पर रोक लगेगी, बल्कि डार्क जोन इलाकों में निगरानी करना भी आसान हो जाएगा।
पटेल ने कहा कि जिला समितियां स्थानीय स्तर पर योजनाएं बनाएंगी, जिससे जल संरक्षण की प्रक्रिया और अधिक प्रभावी होगी।