मनीषा शर्मा। राजस्थान के शिक्षा विभाग में 359 करोड़ रुपये के ICT लैब टेंडर को लेकर गंभीर गड़बड़ी सामने आई है। यह टेंडर समग्र शिक्षा अभियान के तहत सरकारी स्कूलों में आइसीटी (Information and Communication Technology) लैब स्थापित करने के लिए जारी किया गया था। लेकिन टेंडर प्रक्रिया में अफसरों की ओर से चहेती कंपनियों को फायदा पहुंचाने का खेल उजागर हुआ। मामले की शिकायत जब शिक्षा मंत्री मदन दिलावर तक पहुंची तो उन्होंने तुरंत कार्रवाई करते हुए पूरे टेंडर को निरस्त कर दिया और नई पारदर्शी प्रक्रिया के आदेश दिए।
अफसरों का फायदा और कंपनियों का खेल
आरोप है कि बच्चों को आधुनिक तकनीकी शिक्षा दिलाने के बजाय विभाग के अफसरों ने निजी लाभ को प्राथमिकता दी। निविदा में शामिल की गई कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए कई नियम और शर्तें बदल दी गईं। शिकायत में बताया गया कि तकनीकी निविदा के स्तर पर जिन कंपनियों के वित्तीय दस्तावेज गलत थे, उन्हें शुरू से ही खारिज कर देना चाहिए था। इसके बावजूद अधिकारियों ने न केवल इन्हें स्वीकार किया बल्कि क्रय समिति पर दबाव डालकर तकनीकी बिड भी खुलवा दी।
पूल सिस्टम से 50 करोड़ का नुकसान
मामले में यह भी सामने आया कि निविदा प्रक्रिया में “पूल का खेल” खेला गया। इससे केन्द्र और राज्य सरकार को करीब 50 करोड़ रुपये से ज्यादा का सीधा नुकसान होना तय था। गौरतलब है कि पिछले तीन सालों में इसी तरह के कार्यों की निविदाएं 15 से 18 प्रतिशत तक वीलो रेट पर प्राप्त हुई थीं, जिससे सरकार पर 120 से 130 करोड़ रुपये तक का कम वित्तीय भार आया था। लेकिन इस बार अफसरों ने चहेती फर्मों को लाभ पहुंचाने के लिए उच्च दरों पर निविदाएं तय कीं।
नियमों में बार-बार बदलाव
मुख्यमंत्री को भेजी गई शिकायत में यह भी कहा गया कि निविदा की प्रक्रिया में पिछले आठ महीनों से बार-बार नियम और शर्तें बदली जा रही थीं। जिन कंपनियों को लाभ पहुंचाना था, उनके मुताबिक निविदा में संशोधन किए गए। यहां तक कि तकनीकी बिड भी आनन-फानन में खोल दी गई। इसमें शामिल चार फर्मों में से कुछ ऐसी कंपनियां थीं, जिन पर पहले से ही घटिया और मेड इन चाइना सामान सप्लाई करने के आरोप लग चुके हैं। यही नहीं, विभाग ने इन कंपनियों के भुगतान पर रोक भी लगा रखी थी।
शिक्षा मंत्री का कड़ा रुख
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने मामले को गंभीरता से लेते हुए तुरंत कार्रवाई की। उन्होंने तीन बार निविदा को निरस्त कर पारदर्शी तरीके से प्रक्रिया दोबारा शुरू करने के निर्देश दिए। इसके साथ ही दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई के भी आदेश दिए गए। हालांकि शुरुआती स्तर पर अधिकारियों ने इन आदेशों की अनदेखी करते हुए निविदा प्रक्रिया आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन शिकायत मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंचने के बाद मामला और गंभीर हो गया।


